द्वितीय मरीचि अर्थशास्त्र | Dwitiya Marichi Arthshastra
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमती एम. फ़ौसेट एल एल. डी - Shrimati M. Fauset L L. D
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथेशास्र।
विषय-प्रवेश है
( क
'८ सम्पत्तिका स्वरूप, उसकी उत्पत्ति उसकी अद्ढाबदुली और
उसका विभाग जिन नियमोंसे होता है उननियमोंके निणेय
करनेकाठे ास्तको अर्थशास्त्र कहते हैं ।
इस प्रकौर जब अथेदास्त्रका विषय सम्पत्ति हे तब सबसे
पहले यह बताना आवइयंक है कि सम्पत्ति किसे कहते हैं
जिस वस्तुकके परिवतेनमें मूल्य उत्पन्न हो उसे सम्पत्ति
कहते हैं? -दम थोड़ासा विचार करेंगे तो हमें मादम हो जायगा
' कि बहुतसी चीज़ें बड़ी ही उपयोगी होती हैं और आवश्यक भी;
परन्तु वे सम्पत्ति नहीं कहीं जा सकतीं । हवा मनजुष्यजीवनके
छिये बड़ी ही उपयोगी है-बहुत ही आवदयक है-यहाँतक कि उसके
बिना मनुष्य जी नहीं सकता, परन्तु वह बिना किसी प्रकारके
परिश्रमके श्रयेक मनुष्यको मनमानी मिठ जाती है, इसलिये
हम किसीको कितनी भी दवा क्यों न दें, बह उसकी एवजमें
_ हमें कुछ भी देनेको तेयार न होगा । इसी तरह सूरजके प्रका-
शका कुछ मूल्य नहीं मिठ सकता और कितनी ही जगह तो पा-
नीकी भी क्रीमत नहीं मिढती । परन्तु जहाँपर प्रकृतिका दिया
हुआ जल सब मनुष्योंको पूरा नहीं मिढता; उसके पानेके छिये
कुछ श्रम करना पड़ता हैं. वहदँपर वह सम्पत्ति होजाता हैं ।
पहलेके मनुष्याँका विचार था कि रुपये पेसे ही का नाम सम्पत्ति
है। जिस देशमें जितना ज्यादा सोना चांदी है बह देश उतना
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