द्वितीय मरीचि अर्थशास्त्र | Dwitiya Marichi Arthshastra

Dwitiya Marichi Arthshastra by श्रीमती एम. फ़ौसेट एल एल. डी - Shrimati M. Fauset L L. D

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथेशास्र। विषय-प्रवेश है ( क '८ सम्पत्तिका स्वरूप, उसकी उत्पत्ति उसकी अद्ढाबदुली और उसका विभाग जिन नियमोंसे होता है उननियमोंके निणेय करनेकाठे ास्तको अर्थशास्त्र कहते हैं । इस प्रकौर जब अथेदास्त्रका विषय सम्पत्ति हे तब सबसे पहले यह बताना आवइयंक है कि सम्पत्ति किसे कहते हैं जिस वस्तुकके परिवतेनमें मूल्य उत्पन्न हो उसे सम्पत्ति कहते हैं? -दम थोड़ासा विचार करेंगे तो हमें मादम हो जायगा ' कि बहुतसी चीज़ें बड़ी ही उपयोगी होती हैं और आवश्यक भी; परन्तु वे सम्पत्ति नहीं कहीं जा सकतीं । हवा मनजुष्यजीवनके छिये बड़ी ही उपयोगी है-बहुत ही आवदयक है-यहाँतक कि उसके बिना मनुष्य जी नहीं सकता, परन्तु वह बिना किसी प्रकारके परिश्रमके श्रयेक मनुष्यको मनमानी मिठ जाती है, इसलिये हम किसीको कितनी भी दवा क्यों न दें, बह उसकी एवजमें _ हमें कुछ भी देनेको तेयार न होगा । इसी तरह सूरजके प्रका- शका कुछ मूल्य नहीं मिठ सकता और कितनी ही जगह तो पा- नीकी भी क्रीमत नहीं मिढती । परन्तु जहाँपर प्रकृतिका दिया हुआ जल सब मनुष्योंको पूरा नहीं मिढता; उसके पानेके छिये कुछ श्रम करना पड़ता हैं. वहदँपर वह सम्पत्ति होजाता हैं । पहलेके मनुष्याँका विचार था कि रुपये पेसे ही का नाम सम्पत्ति है। जिस देशमें जितना ज्यादा सोना चांदी है बह देश उतना




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