आत्मोपदेश | Aatmopadesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8 [ संस्कार भोर विवेकठुद्धि
लोगों का मज्जल-अमड्ूल अवलम्प्रित हें । इच्छा-शक्ति का प्रयोग:
करके दी दम लोग श्रेय के पथ पर झम्रसर होते हैं । प्रवृत्ति दम
लोगो को स्वा्थेसाधन की छोर--स्थायी तुच्छ सुख की शोर--
प्रेय की थोर--ले जाती है । स्वाथसाधन झअधवा प्रेय ही यदि-
हमारे जीवन का पथप्रदशंक दो तो ऐसा दोने से हम लोग झन्त
मे कहाँ जा पहुँचेगे ? एक टुकड़ा जमीन रखना झगर इमारा :
स्वाथ हो, तो उस ज़मीन को झपने पड़ौसी से छीन लेना भी
हसारा स्वाथे होगा । यदि एक टुकड़े कपड़े से हमारा स्वाथसाघन
हो, हो उसे चुराकर ले छाना भी हमारे स्वाथ के 'झनुकूल दोगा।-
इसी भ्रान््त घारणा के कारण तो प्रथ्वी पर इतने युद्ध, विमह,
विद्रोह, विप्लच, प्रजापीड़न 'और पड़य॑त्र हुआ करते है। सांसा-
'रिक सुख-दुःख के उपर ही यदि हम लोगों का झुभाशुभ शव
गलस्बित दो, तो इश्वर के प्रति झपने सन को प्रकृत पथ पर हम
लोग किस प्रकार रख सकेंगे ? कारण, यदि हम च्तिम्रस्त हा;
दुःख दुद्शा भोग करें, तो ऐसा होने से हो दम कहेगे कि इश्वर+
हमारी 'अवहेलना करते हे । बाह्य विषयों पर दी यदि श्रेय की
प्रकृति 'और श्रेय का श्रेयत्व निभेर करें, तब तो इश्वर के प्रति हम
लोगो के मन का भाव इस प्रकार दी होगा । 'ातएव ऐहिक सुख-
दुख पर दम लोगो का झुभाझुभ निभेर नही रददता; जो मारे
व्यायत्ताधीन है उसी इच्छा के प्रयोग पर दम लोगों का प्रकृत
झुभाझुभ सिभेर रददता है ।
दम लोगो की जितनी सनोवृत्तियाँ हैं उनमें से एक सनोवृत्ति
आप ही झपनी छालोचना किया करती हे--आाप ही झपने को
शअच्छी कहती है अथवा. बुरी कदती है। इस तरद की आत्म-
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