आत्मोपदेश | Aatmopadesh

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Aatmopadesh by नरेन्द्र नारायण सिंह - Narendra narayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 [ संस्कार भोर विवेकठुद्धि लोगों का मज्जल-अमड्ूल अवलम्प्रित हें । इच्छा-शक्ति का प्रयोग: करके दी दम लोग श्रेय के पथ पर झम्रसर होते हैं । प्रवृत्ति दम लोगो को स्वा्थेसाधन की छोर--स्थायी तुच्छ सुख की शोर-- प्रेय की थोर--ले जाती है । स्वाथसाधन झअधवा प्रेय ही यदि- हमारे जीवन का पथप्रदशंक दो तो ऐसा दोने से हम लोग झन्त मे कहाँ जा पहुँचेगे ? एक टुकड़ा जमीन रखना झगर इमारा : स्वाथ हो, तो उस ज़मीन को झपने पड़ौसी से छीन लेना भी हसारा स्वाथे होगा । यदि एक टुकड़े कपड़े से हमारा स्वाथसाघन हो, हो उसे चुराकर ले छाना भी हमारे स्वाथ के 'झनुकूल दोगा।- इसी भ्रान्‍्त घारणा के कारण तो प्रथ्वी पर इतने युद्ध, विमह, विद्रोह, विप्लच, प्रजापीड़न 'और पड़य॑त्र हुआ करते है। सांसा- 'रिक सुख-दुःख के उपर ही यदि हम लोगों का झुभाशुभ शव गलस्बित दो, तो इश्वर के प्रति झपने सन को प्रकृत पथ पर हम लोग किस प्रकार रख सकेंगे ? कारण, यदि हम च्तिम्रस्त हा; दुःख दुद्शा भोग करें, तो ऐसा होने से हो दम कहेगे कि इश्वर+ हमारी 'अवहेलना करते हे । बाह्य विषयों पर दी यदि श्रेय की प्रकृति 'और श्रेय का श्रेयत्व निभेर करें, तब तो इश्वर के प्रति हम लोगो के मन का भाव इस प्रकार दी होगा । 'ातएव ऐहिक सुख- दुख पर दम लोगो का झुभाझुभ निभेर नही रददता; जो मारे व्यायत्ताधीन है उसी इच्छा के प्रयोग पर दम लोगों का प्रकृत झुभाझुभ सिभेर रददता है । दम लोगो की जितनी सनोवृत्तियाँ हैं उनमें से एक सनोवृत्ति आप ही झपनी छालोचना किया करती हे--आाप ही झपने को शअच्छी कहती है अथवा. बुरी कदती है। इस तरद की आत्म-




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