सत्य ही ईश्वर है | Satya Hi Ishwar Hai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Satya Hi Ishwar Hai by आर० के० प्रभु - R. K. Prabhuगाँधीजी - Gandhiji

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

आर० के० प्रभु - R. K. Prabhu

No Information available about आर० के० प्रभु - R. K. Prabhu

Add Infomation AboutR. K. Prabhu

मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

Add Infomation AboutMohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मेरी खोज प्‌ हाँ ” अहिंसा मेरा औव्वर है और सत्य मेरा औष्वर है। जब में अहिसाकों ढूढता हू तो सत्य कहता है: ' मेरे द्वारा भुसे खोजों।” जव में सत्यकी तलादा करता हू तो अहिंसा कहती है: ' मेरे जरिये अुसे खोजो ।” यंग जिंडिया, ४-दे- २५ अँसे सवंव्यापी सत्यनारायणका साक्षात्कार करनेके लिखें मनुष्यके मनमें छोटेसे छोटे प्राणीके प्रति अपने ही जैसा प्रेम होना चाहिये । और जो मनुष्य जिसकी आकाका रखता है चह जीवनके किसी क्षेत्रसे वाहर नहीं रह सकता ! जिसी कारणसे मेरे सत्यप्रेमने मुझे राजनीतिके क्षेत्रमे घसीट लिया है; और में बिना किसी सकोंचकें किन्तु पूरी नम्रताके साथ कह सकता हू कि जो लोग यह कहते हैं कि धमंका राजनीतिके साथ कोओी सबध नही है वे नहीं जानते कि धर्मका क्या मर्थ हैं। ही उ (अग्रेजी) (१९४८); पृष्ठ ६१५ में मानव-जातिकी सेवाके द्वारा औष्वर-दर्शनका प्रयत्न कर रहा हूं, क्योकि में जानता हू कि औीव्वर न तो अूपर स्वर्यमे है, न नीचे किसी पाताठमे; वह तो हरअंकके हृदयमें विराजमान हैं । आत्मकथा (अग्रेजी) (१९४८); पृष्ठ ६१५ मुने पुथ्वीके नण्वर राज्यकी कोओी आकाक्षा नहीं है। मे तो स्वर्गके राज्य अर्थात्‌ मोक्षके लिखें प्रयत्न कर रहा हू। अपने अुद्देव्यकी पुर्तिके लिये मुझे किसी गिरि-गुफाकी गरण लेनेकी आवश्यकता नहीं हैं। अगर में समझ सक्‌ तो वह गुफा मेरे भीतर ही मौजूद हैं। युफावासी युफामें रहते हु भी मनके महल वना सकता हैं; जव कि जनक जैसा महलमे रहनेवाला अैसा नहीं करता। युफामें रहनेवाला विचारके पखों पर वैठकर ससारका चक्कर लगाता रहे तो अूसे नान्ति नहीं मिलती । लेकिन जनक जैसे छोग ' शान- जौकत' से रहते हुब भी अकल्पनीय चान्ति प्राप्त कर सकते है। मेरे लिये मोक्षका, मार्ग यहीं हैं -कि._ में ..अपने देगकी और देशके द्वारा मानव-जातिकी सेवाके लिये अविश्वान्त -परिश्रम करता रहू। में सब प्राणियोंके साथ अकता स्थापित करना चाहता हु । यग भिंडिया, 3-व- रू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now