आर्य जीवन | Arya Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूचना पज
अति आवदयकीय बाब्दों के सूल अभिन्न है। वे दिद्वान इस भूखंड के
लोगों को काकेदीय' या आर्य नाम से निर्देश करते है । भाषा-विज्ञान-वित्
और जाति-तत्व-संदिच्छ॒ और ऐतिहासिक पढ़ितों का यदद तके॑ ओर
सिद्धांत अश्रात हो सकता है तब भी मस्तक के अस्थि-विधान
या भाषा के मु झाव्द टटोलने में ही जातीयता नहीं है । इस समस्त
देश के मनुष्यों का आदि-पुरुष एक है और इनमें पस्रपर रक्त-सम्पर्क है
-उइंतने हीं से उनका जावाय व्यक्तित्व एक है यह नहीं कहा जा
सकता । अवयव, आफृति, और भाषा का सामजस्य तो जाति का जड़-
पिड मात्र है; जीवन का आददां और उसकी पर४्परा उसमें सवश्र और
सर्वातिभाव से बेंघ कर नहीं रह सकते । एक जीविन वृक्ष की शाखा या
पत्ते खाद के रूप मे दूसरे टृक्ष को अंग वृद्धि कर. सकते है-
उसके जीवन में अपनी दाक्ति मिला दे. सकते हैं --दिद्दानू
लोगों के लिये विज्ञान के बल से यह जान लना अद्यक्य नही, किन्तु,
मूल वृक्ष से एक बार सब्न्घ हट जाने पर उसकी काखा या पत्ते फिर
मुलवृक्ष के अदा रूप में अरहण नहीं किये जा सकते, भोर न वह
वक्ष ही मुलवुक्ष के साथ एक हो सकता है. जो. उन शाखा या पत्तों से
पुष्टि पाता है । जो बात वृक्ष के लिये है वहा जाति के जीवन मे भी है ।
भौतिक विद्रह या जडपिड जीवन नहीं है । केवल रक्त-सम्पकं वंधा-
परम्परा नहीं है, और पितृ-पुरुप एक हा तो सदा ही जातीय-जीवन एक
होगा--उसकी कोई चजह नहीं है ।
जीवन एक क्रम-वद्ध न-दील-नीति या नियम है । चारों ओर से
हमेशा कितनी ही शक्तिया सम्पक, ससग, साहचय के द्वारा इस क्रम-
-बद्धन को बढ़ाती रहती है । जीवन-परम्परा में प्रत्येक अवस्था के प्रभाव
मिड
User Reviews
No Reviews | Add Yours...