भारतीय संस्कृति की कहानी | Bhaaratiiy Snskriti Kii Kahaanii

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Bhaaratiiy Snskriti Kii Kahaanii by भगवत शरण उपाध्याय - Bhagwat Sharan Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय संस्कृति को कहानी दा री लपेंट लेते हैं। नदी की सतह पर बहती लकड़ी को देख उस पर बेठकर बहने लगते हैं, मछली मारकर श्राहार भी करते उॉफर मॉलडफिसमर वी! एव फ़िशसििसिएं: ासतंकितकग' . विद, (जि फ् [हु क... * पी नाभि डक जि दा नि जकीविलिगिफ” लि वर्ग द आकार ँ प्रह्मकिगी्िँ प्र यदा॥ ए््रवरपग /्र्रिशवर की प्र ही तमसततामशवाठतपर्क्रक (ग ुदा्मिशडकिन्डफैडकर:०:: डक माथे ल नितिन: काददद्ूदधदुदकर कर थक नाक, नमकाए सम ही फैजिशापरलिएगिकोिक 'भाक: लि तक के कफ ग भा कक वि 1 मन तल्‍ल्‍ भजन फ् ४ म का अं. उी 5 ॥ की कलह एक मा का ु दाग | 0000 0 का मल तमिपती वि िलिशििक लत ' गा कीं दावा किक नकल” जमकर ता अं तल्‍ _ बहुती लकड़ी पर बेठकर बहने लगते हैं _ हैं। उन्हें एक प्रकार का सालाना कलेंडर या. ऋतुप्रों का एक के बाद एक कर लौटना भो मालम है । जंगलों श्राग में जले जानवरों का मांस खाकर सीख लेते हैं कि उन्हें भनकर खाना उयादा स्वादिष्ट है । स्वयं जलाकर श्राग का इस्तेमाल भी सोख लेते हैं । यह पुराने पत्थर का यग है, जब ताँबा, लोहा वगरह धातुग्रों का इस्तेमाल इन्सान को नहीं मालम था, वह केवल पत्थर का ही इस्तेमाल करता था। ऐसे श्रादमियों को शिकार करती हुई तस्वीरें मिर्जापुर को गुफाश्रों में पाई गई हैं । जमाना बदलता है। श्रादमी श्रपने हथियार चिकने




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