तूफ़ान झुका सकता नहीं | Tufan Jhuka Sakta Nahi

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Tufan Jhuka Sakta Nahi by शराफ रशीदोव - Saraaf Rashidov

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो निर्मल चइ्मा तेज गरमी पद रही थी. मध्यान्ह का सूरज मानों भूल गयां था कि अभी गरमी नही , वसत्त है, पूरे जोर से तप रहा था। आयकीज अपने घोड़े वायचीवार पर कई किलोमीटर का सफर तय कर जिले से लौट आधी थी। उसका चेहरा जल रहा था। घोड़े से उतरकर आयकीज़ ने उसे बाध दिया और स्वय गरमी में लम्बे सफर के वाद हाय-मुहद धोने अहाते में माली के पास चली गयी। अहाते में कुछ ठण्डक थी... मन्द पर्वतीय पवन के भ्ोके पोपलर और वेद की ताज़ा पत्तियों को हिला रहे थे , सारे अहाते में तेज मादक सुगध फैलाते फूलों को लहका रहे थे। नाली के पास , फूलों के बीच , दहतूत को छाया में णुक चौड़ी लकड़ी की खाट दिछी थी। शीतल पानी से हाथ-मुह धोकर आयकीज खाट पर बैठ गयी और सोच मे डूव गयी. गरमी के कारण थकने और तद्रिल हो जाने पर इस प्रकार निश्चल बैठकर शान्ति और ठण्डक का आनन्द लेना , पानी पर डोगियो की तरह तिरती सेव को नन्ही-नन्ही श्वेत पथड़ियों की ओर देखना , आराम से सोचना , यादों की दुनियां में खो जाना कितना अच्छा लगता है ! वह नाली को ताकती हुई अपने पति आलिमजान के बारे में सोच रही थी, पर्वतीय समीर और कल-कल करती नाली की जल-धारा मानों उसके साली के जल सदूश निर्मल और स्वच्छ विचारों को दोहरा रहे थे, जिसके तल में नाना रंग के ककर साफ दिखाई दे रहे थे। आलिमजान इस समय बहुत दूर था। उसने दो वर्ष पूर्व सस्थान के पत्राचार विभाग मे प्रवेश लिया था और हाल ही में उसकी आगामी परीक्षाएँ देने गया था। वह आयकीज़ को अकसर लिखा करता था, उसके पत्रों की प्रत्येक पक्ति उसके प्रति चिन्ता और प्रेस मे ओत- प्रोत होती थी ; किन्तु पत्र स्वय आलिमजान की कसी पूरी नहीं कर सबने थे। आयवकीज् को अपने पति के साथ शाम को यहाँ , घर में होनेवाली सम्वी सायक्रालीन बातचीत , ग्राम सोवियत , बार्यालय और




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