नागरी प्रचारिणी पत्रिका - वर्ष 46 | Nagaripracharini Patrika - Varsha 46
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वाल्मीकि अर उनका काव्य रामायण * धर
तथा अथवां निधिरे , 'शत-यातु”र अर जिह्काष (८ जादू के
खजाने ) शब्द प्रयुक्त हुए हैं । ऋग्वेद में'वशिष्ठ रोते हैं कि मेरे विराधी
मुभ्के व्यथे यातु-घान कहते हैं । ये सब बातें इन कुलों की अत्यंत
प्राचीनता की द्योतक हैं ।
5 ४, महाभारत में भी लिखा है कि मूल गोत्र चार थे--झगु,
झंगिरा, कश्यप झोर वशिष्ठ, फिर कमेशा दूसर दूसरे गोत्र हुए । इन
चारों नामों में भी कश्यप को छोड़कर शेष तीन वही हैं जा उक्त पितर-
वर्ग की सूची में हैं । इन्हीं चारों आद्य ऋषियों का विकास जह्मा कं
मानस पुत्रों के रूप में होता ने, जिनकी संख्या चार, सात, आठ, नी,
दस झार कहां कहीं बारह तक मिलती है* । इनमें भी सरूगु सबसे
ज्येप्ठ झोर श्रेष्ठ दैं; वे ्ह्मा के हृदय से हैत्पन्न हैं? । इस सबका निष्कष
यही है कि ऋषियों के प्राचीनतम बंशों में भ्रूगुबेश का एक विशिष्ट
स्थान था ।
ऊपर हमने देखा है कि मूल भ्रणु प्रचेता श्रधात् वरुण से उत्पन्न
कहें जाते थे। यह ठीक भी है; क्योंकि यह वंश वरुण संप्रदाय का
सबसे बड़ा स्तंभ था 1. ब्रह्मा के मानस पुत्र बन जाने पर भी उसका
पुराना नाम प्राचेतस सार वारुणि उसयेां का व्यों बना रहा ।
२--बृदभारदीय ८1६३; जनल व रघिल एशिय टिक सपसाइटी, १६१६,
प्र० डेदर-६र३।
र--ऋ० वे० ७१८२१; निसक्त द | ३०; यरशिष्रस्पृति ३०1११; मर्डॉनिल
और कीथ का वैदिक इ ड कस २1४९; २1३४२; पार्जिटर प्र० श०९ |
३---महाभारत ( कलकत्ता, श्८३६ ई० ) १२८७३, रे० ३५ |
४ननऋष वे० ७1१०४।१५-१६ |
भ.--मद्ाभारत ( कलकत्ता १८३६ इज ? २२1२६८।१०८७४७७-प८
६--भगवदूदत्त, भारतवष का इतिहास, प्र० ३२; बायु० ( पूर्वाघ ) ९१९२-६४;
न्ह्मांड० पूव भाग, र६, ३२ ।
७--वायु० ( पूर्वाघ ) £1£ २-६५; अ्रह्मांड० पूवमाग, र।९, २९; “जहा शो
भिक्चा निःसतेा भगवान खयु: ।”--मारत १६-४० ।
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