हिरती दीवारें | Girti Deewaren

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Girti Deewaren by उपेन्द्र नाथ अश्क - UpendraNath Ashak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ । उपेन्द्रवाथ अश्क का कोई उपन्यास मैं इच्छा होते हुए भी नहीं पढ़ सका । हाँ यदि प्रभाव ही की खोज करनी हो तो मेरे खयाल में भ्रालोचक को उन्हीं लेखकों में उसे ढूँढ़ना होगा जिन्हें में उस ज़माने में पढ़ता रहा--वुर्गनेव गॉल्ज़वर्दी रोस्याँ रोलाँ वर्जिनिया वुल्फ शॉलोखोव श्रौर प्रेमचन्द । मुझे तुगनेव का परिष्कृत 9०150 चुलबुलापन श्र हास्य मिला व्यंग्य गॉल्ज़वर्दी का छोटी-छोटी तफ़सीलों को उजागर करने वाला चरित्र-चित्रण रोम्याँ रोल के याँ क्रिस्ताव का पैटन श्रौर प्रेमचन्द की जागरूकता श्रच्छी लगी । शॉलोखोव से मैंने जहाँ तक इस उपन्यास का सम्बन्ध है क्या पाया ? यह नहीं कह सकता--शायद कथानक का ढीलापन ५ शिरती दीवारें के नाम ने श्रालोचकों को खासी परेशानी में डाल दिया । प्पन्द्रह-बीस लेख मेरी दृष्टि से गुज़रे हैं श्रौर एक भी ऐसा नहीं जिसमें ग्रालोचक ने किसी-न-किसी तरह कोई-न-कोई दीवार गिराने का प्रयास नकिया हो। दोष उनका नहीं । दोष मेरा हैं। जब मेंने उपन्यास का नाम गिरती दीवारें रखा तो झ्रालोचकों के लिए यह स्वाभाविक ही था कि उपन्यास में गिरती हुई दीवारों की घड़घड़ाहट शभ्रथवा मलबे की गर्द-धूल देखने को वांछा रखें । दीवार शब्द ने ही कुछ को उपन्यास का रस लेने के बदले दीवारें ढूंढने श्ौर परेशान होने की उलभकन में डाल दिया । फिर शभ्रालोचकों ने श्रपनी-प्रपनी रुचि के श्रतूसार इसमें दीवारें ौर उतका गिरना देखना चाहा और वैसा न होने पर उन्हें निराशा हुई । जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है में पहले इस उपन्यास का नाम चेतन . रखना चाहता था । चेतन के नाम से इसके दो-तीन परिच्छेद तब पत्नभ पत्रिकाओं में छपे भी थे । उपन्यास छपने के बाद कभी-कभी में सोचता था कि मैंने नाहक इसका नाम बदला गिरती दीवार नाम जिस योजना के कारण रखा था बह तो पूरी न हुई जिस रूप में छपा उसमें चेतन . से भी काम चल सकता था । लेकिन ने इस नाम को ले कर




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