सुधी सुधा निधि कृत रुक्मिणी हरण महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन | Sudhi Sudha Nidhi Krit Rukmini Haran Mahakabya Ka Sameekshatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय प्रथम अधिधा विवक्षा तात्पर्य प्रविधाग व्यप्रेक्षा साम्थ्यन्वियेकार्थी भाव दोष धन-गुणोपावानालंकार योग सावियोगरूपाः शब्दार्थयो: दादश संबन्धाः साहित्यमित्तुच्यते । (डंगाखकाश, सप्तमप्रकाशु, ये सम्बन्ध दृश्य एवं श्रव्य दोनों प्रकार के काथ्यों में प्राप्त होते हैं । दृश्य काव्य के शास्त्रकार भरत का ग्रन्थ उपलब्ध है। इसमें वाचिक अभिनय एवं नाट्य रसों का प्रकरण में वर्णित तत्व श्रव्य काव्यों में भी व्याख्यायित होते रहे हैं। काव्य विवेचन के सिद्धान्त का मुख्यतः अलंकार शास्त्र कहा जाता है। इस शास्त्र के मुख्यतः २७ विचारकों की सहदय भावुकों में आदर प्राप्त हुआ। उनके नाम एवं वैशिष्ट्य इस प्रकार हैं। . १- भरत :- काव्य में रस की सत्ता के प्रथम व्याख्याता भरत नाट्यशास्त्र के रचियता कालिदास (प्र० शती ई० पू०) से बहुत पूर्व हुये थे । उनका स्मरण कालिदास... ने विक्रमोर्वशीय में सादर करते हैं। मुनिना भरतेन यः प्रयोगों भवतीष्वष्टरसाभय: प्रयुक्त । ललताभिनयं तभबभर्ता मस्तां द्वष्ट्रगनाः स लोकपाल: ।। (विक्रमोर्वशीयम) . भरत के ग्रन्थ के दो भाग है। . १- नाट्यवेदागम २- नाट्यशास्त्र प्रथम द्वादशसाहस्त्री एवं द्वितीय को षट्रसाहस्त्री कहा जाता है। इसके टीकाकार अभिनव गुप्त ने स्पष्ट स्वीकार किया है कि भरत ने पूर्वाचार्यों के सिद्धान्तों . का भी यथावसर सन्निवेश किया है। आज प्राप्त संस्करणों में ३७ अध्याय या ३६ अध्याय हैं




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