अन्नदा | Annada
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यह सुनकर अस्नदा का मन उटका 1--यह पेत-वारी घूमने का दकत
है? चेन से तो मैं आयी ही हूं। वहाँ तो वह गया हो नहीं । हो सकता है
किसी के यहाँ बैठा गप लगा रहा हो, यह सोचकर उसने मंदा से कहा--
यही ने आवाज तो दे, भइया ! भइया 1! करके । कही होगा तो बोलेगा
हो।”
मदा की मधुर आवाज कोयल-मी शूंजी, पर गोपाल का उत्तर नहीं
काया 1
झननदा गोपाल के स्वभाव को जानती थी, उसके मन को जानती
थी । बेटे को माँ से बढकर कौन समझ सकता है। वह चुपचाप उठी ।
ओमारे से दीया लिया । देखा, ओमारे में नहीं, दरवाजे में नहीं, मडया में
सही । गाँव में किसी के यहाँ बैठा होता तो मदा की आवाय सुन कर
बोलना तो सही । आकुल-सी, च्याकुल मी, वह दीया लिए दालान में गई /
देखा, एक कोने मे खाट पर बिना कुछ ओढे-विछाये गोपाल चुपचाप पडा
था।
भाने में दीया रखकर अरनदा उसके पास गई ।--'गोपाल
गोपाल ! पुकार करें अन्नदा ने उसे झकझोरा। गोपाल ऊँ ऊँ' करके
करवट बदलकर रह गया । अन्नदा ने फिर झकझोरा--'गोपाल ! उठ,
यह सोने की कौन-सी देला है ! न खाया, न पिया, आकर चुपवाप इस
कोने मे पड़ा है। कभी और भी यहाँ सोया था, जो आज यह नई जगह
सोने बे लिए चुनी है । उठ, जल्दी उठ ।”
गोपाल नहीं उठा । वह करवट बदलता ही रहा। पर जब देखा
माँ नही मान रही है तो झिडक कर बोला--''मानती क्यो नहीं ? मैने
कह दिया कि मुझे भूख नहीं है। मैं न उठूंगा, न याऊँगा । तू जा यहाँ
से, मुन्ने तण मत बार (”
*जाऊँ कहाँ * बायेगा क्यो नहीं * क्या हुआ है जो आज विना खायें
ही सोयेगा भीर वह भी यहाँ इस कोने में 1” अन्नदा के स्वर में आग्रह
था।
गोपाल झल्लाया--“हाँ, यही सोऊँगा, मेरी मरजी। खामे को मन
सी, नही, दै, ५ पुरे च्युभ्ययद पत्श, रद, दे १ जता, पर: किया, यही, संत”
भननदा : 1
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