प्रपच्या परिचय | Prapachaya Parichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्दोनशास्तर थ्द
हल खोजनेका यत्न करता हे, इसकिए यह. बलपृषेर्क कहा
जा सकता है कि कोई भी श्रतिभाशाठी मस्तिष्क दारशनिक विभन्री-
से वंचित नहीं रद सकता । अयवा-
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मानवी मस्तिष्कका स्वाभाविक निर्माण ही उसे दार्शनिक
विमर्दके छिए बाधित करता है । * डाक्टर पाठसनने इसी भावकों
कुछ विद्वदतर रूप व्यक्त किया है । उनके अपने दाब्द है---
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'सेसारके प्रत्यक जाति और व्याक्ति, या कमसे कम मध्यम श्रणकि
समुननत व्यक्तियोकी अपनी फिलासफी अव्य होती है । यहदतिक ' कि
समाजके साधारणतम व्यक्तिकी भी फिलासफी है । वह भी मैं क्या हूँ?
और प्रकृति क्या है * हम दोनों कहाँसे आये और कहों जॉयगे ?' आदि
प्रश्सौको हल करनेका यत्न करता है । फलतः संसार रहनेवाके
प्रत्येक ब्याक्तिी अपनी अपनी फ्िलासफी भी अवश्य होती है । .
उपयुक्त उद्धरणौको देखकर यह परिणाम बड़ी : स्पेडताके साथ
निकाला जा सकता है कि दरीनका विषय या दारशेनिक प्रवृत्ति बड़ी
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