प्रपच्या परिचय | Prapachaya Parichay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रपच्या परिचय  - Prapachaya Parichay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विश्वेश - Vishvesh

Add Infomation AboutVishvesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द्दोनशास्तर थ्द हल खोजनेका यत्न करता हे, इसकिए यह. बलपृषेर्क कहा जा सकता है कि कोई भी श्रतिभाशाठी मस्तिष्क दारशनिक विभन्री- से वंचित नहीं रद सकता । अयवा- ** (00०प्४पदपथ्टित 88 की उंड, प्राण 8त0 घ्राातपें प्रा फपा0- 20 पं86, च 60७४ छा1050,िप उ, 14. मानवी मस्तिष्कका स्वाभाविक निर्माण ही उसे दार्शनिक विमर्दके छिए बाधित करता है । * डाक्टर पाठसनने इसी भावकों कुछ विद्वदतर रूप व्यक्त किया है । उनके अपने दाब्द है--- * फुफरहलाप्प्र शक्षा10 छापे 6प8ा'प्र एक, 9 1688. पा एणकशाकाए पेढरहाएु6वे एक, 28 9. एमो080,ए, पघि० छी क्राए, ताकत एव णि ९0016, ५00 988 8. एंव 050] 09, उ० पुप९8 80 8४67 ५90. 96. पुष्र०5ए008 उ९्रक्षा'परांएडट किट णणट्ठांप ाए0 पेह5निंग्रफ् ए फि& भणरत छापे पघ्ण, 10. -णिड शछा86 0९०16 पंग्राप्ट्ठ 10 8 86 0. ॥क्पा'8 0976 081 शपा०्शणुफर छाह्0, ु्ान०तेणठन0 ५ पटिणा०8णुफए, छू, रे. 'सेसारके प्रत्यक जाति और व्याक्ति, या कमसे कम मध्यम श्रणकि समुननत व्यक्तियोकी अपनी फिलासफी अव्य होती है । यहदतिक ' कि समाजके साधारणतम व्यक्तिकी भी फिलासफी है । वह भी मैं क्या हूँ? और प्रकृति क्या है * हम दोनों कहाँसे आये और कहों जॉयगे ?' आदि प्रश्सौको हल करनेका यत्न करता है । फलतः संसार रहनेवाके प्रत्येक ब्याक्तिी अपनी अपनी फ्िलासफी भी अवश्य होती है । . उपयुक्त उद्धरणौको देखकर यह परिणाम बड़ी : स्पेडताके साथ निकाला जा सकता है कि दरीनका विषय या दारशेनिक प्रवृत्ति बड़ी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now