प्रपच्या परिचय | Prapachaya Parichay

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Prapachaya Parichay by विश्वेश - Vishvesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्दोनशास्तर थ्द हल खोजनेका यत्न करता हे, इसकिए यह. बलपृषेर्क कहा जा सकता है कि कोई भी श्रतिभाशाठी मस्तिष्क दारशनिक विभन्री- से वंचित नहीं रद सकता । अयवा- ** (00०प्४पदपथ्टित 88 की उंड, प्राण 8त0 घ्राातपें प्रा फपा0- 20 पं86, च 60७४ छा1050,िप उ, 14. मानवी मस्तिष्कका स्वाभाविक निर्माण ही उसे दार्शनिक विमर्दके छिए बाधित करता है । * डाक्टर पाठसनने इसी भावकों कुछ विद्वदतर रूप व्यक्त किया है । उनके अपने दाब्द है--- * फुफरहलाप्प्र शक्षा10 छापे 6प8ा'प्र एक, 9 1688. पा एणकशाकाए पेढरहाएु6वे एक, 28 9. एमो080,ए, पघि० छी क्राए, ताकत एव णि ९0016, ५00 988 8. एंव 050] 09, उ० पुप९8 80 8४67 ५90. 96. पुष्र०5ए008 उ९्रक्षा'परांएडट किट णणट्ठांप ाए0 पेह5निंग्रफ् ए फि& भणरत छापे पघ्ण, 10. -णिड शछा86 0९०16 पंग्राप्ट्ठ 10 8 86 0. ॥क्पा'8 0976 081 शपा०्शणुफर छाह्0, ु्ान०तेणठन0 ५ पटिणा०8णुफए, छू, रे. 'सेसारके प्रत्यक जाति और व्याक्ति, या कमसे कम मध्यम श्रणकि समुननत व्यक्तियोकी अपनी फिलासफी अव्य होती है । यहदतिक ' कि समाजके साधारणतम व्यक्तिकी भी फिलासफी है । वह भी मैं क्या हूँ? और प्रकृति क्या है * हम दोनों कहाँसे आये और कहों जॉयगे ?' आदि प्रश्सौको हल करनेका यत्न करता है । फलतः संसार रहनेवाके प्रत्येक ब्याक्तिी अपनी अपनी फ्िलासफी भी अवश्य होती है । . उपयुक्त उद्धरणौको देखकर यह परिणाम बड़ी : स्पेडताके साथ निकाला जा सकता है कि दरीनका विषय या दारशेनिक प्रवृत्ति बड़ी




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