हमारे कुछ प्राचीन लोकोत्सव | Hamare Kuch Pracheen Lokoutsav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय प्रवेश हर
यह तभी होता है जब वे थके-मांदे और जंभाई लेने वाले ही थे । उसी
समय बाहर से निव्श मिलते हो उसके बगल वाले भी शपनी थकावट को
क्रिया द्वारा प्रकट करने लगे ।
पुनः कभी-कभी देखा जाता है कि श्रौरों को क्रियाशील देखने से हम
और श्धिक उत्साह और अआगम्रह के साथ काम करने लगते हैं । इसका रहस्य
यह है कि प्रारंभिक दशा के निर्देश की प्रतिक्रिया स्वरूप हम काम करने लगे थे ।
फिर उसी निदंश द्वारा औऔरों को प्रभावित होते देख हमारे ऊपर उसकी प्रति-
क्रिया प्रबल हो गयी | हि सन
सामूहिक निर्देश
जब जान इक कर कोई मनुष्य दूसरे के मन को प्रभावित करता है तब
उस क्रिया का नाम निर्देश है । इसके विपरीत श्वद॒ निर्देश जो कोई सामाजिक:
जीव समाज की आ्रोर से प्राप्त करता है, उसका नाम सामूहिक निर्देश है । मानव
हृदय में सामाजिकता की प्रदृत्ति के होने के कारण वह सामूहिक निदेश के
वश में हो लेता है। इसी निर्देश द्वारा प्रभावित होकर मनुष्य कदाचित् समाज
विरोधी काम करता है, समाज के सदस्यों की सामूहिक भावना के प्रति सहानुभूति-
शील होता है तथा लोक-मत के प्रति श्रद्धालु होता हैं। इन भावनाओं के होने
से प्रत्येक देश के समाज के सदस्यों की चिन्ता-घारा श्र प्रतीति की एक-रसता
होती है; परंपरा से झ्ागत नैतिक मान का संरक्षण होता है तथा जन्मतः बहुत
से ऐसे विषय हैं जिन्हें हम कभी सोचते-विचारते नहीं, प्रत्युत॒ जिन्हें हम स्वयं-
सिंद्ध मानते हैं--समाज हमारे लिये नियंत्रित करता है । कक
उसी प्रकार मंदिरों में दशन करने के लिये जाने पर या पूजा-स्थान में
देर तक स्थिर बैठे रहने से लोग झावेश में रा जाते हैं । होमाग्नि और घूप-
दीप की शिखाएँ, घंटी की टुन-न ध्वनि, वहाँ का गंभीर वातावरण पुरोहित
का सुरीले स्वर से मंत्र-पाठ या. कथा-वाचन--सभी कुछ के एक साथ झा
मिलने से दर्शकों को बिलकुल संमोहित कर देता है ।
.... उसी प्रकार अपने-अपने व्यास पीठ पर से प्रवचन करने वाले सुनने.
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