तेरापंथी हितशिक्षा | Terapanth Hit Shikhsha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
भर्थात-? तीर्थकरोंका अद्भतरूप-गन्धवाला देह होता है, रोग
तथा पसीना भी नहीं होता, २ कसछकी सुगन्धी जेसा श्वास होता
है, ३ रुधिर तथा आसिप सौके दुग्ध जैसा सफेद दोता दे और ४
आह्दार--नाहार कोड दखन लीं पाता |
चर ७ दम
ये ही चार अविशय, समवायांगसन्रके ४८-४९ ( लिखी
हुई प्रतिकें ) पत्रमें, ३४ अतिशयोक्त अन्तगत इसतरह
हिसे है;
का
“नितमयनिरुददेदा सापलट्टी, सोखीरपंडर पंससोणिते, पउ-
मुलगंपिए उस्तासनिस्सासे, पच्छने आदारनीहारे अदिस्से
. मंसचकबुणा ”
0 ही न७ भ््झि
अधः--निरासय तथा नि्मठशरीरवाल, गोदुर्ध जैसे सफेद
मांस-रुधिरवाढे, कमछ जैसे. सुगंधित श्वासोच्छवासवाढे, तथा
जिनके आहार-नीदार चमेचश्ुसे न दीख पढ़ें ।
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अब बतछाइये; भीखमजीर् ' ऊपरकी बातें पाइ जाती थीं ? |
७-५ दी (७4 ३
जब नहीं. पाइ जाती थी, तो फिर उसके * जन्मकल्याणक
कहदनेवाला सहामृषावादी नहीं सो और क्या ? | अस्तु, अब आगे -
४
पढें |
सीखमजीन ढूंढकसाघु रुगनाथजीके पास दीक्षा तो छेठी,
परन्तु उसको पीछेसे बहुत पश्चाताप होने छगा । इसके सनसें
अनेक प्रकारकी शंकाएं होने छयीं । उन साघुओंके आचार-विचारोंकों
देख करके इसके सनसें निचार हुआ कि से शुद्ध साग पकड़
क्यांकि दूसरी ढाखके प्रथम दोहेम कहा है।-
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