तेरापंथी हितशिक्षा | Terapanth Hit Shikhsha

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Book Image : तेरापंथी हितशिक्षा  - Terapanth Hit Shikhsha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 भर्थात-? तीर्थकरोंका अद्भतरूप-गन्धवाला देह होता है, रोग तथा पसीना भी नहीं होता, २ कसछकी सुगन्धी जेसा श्वास होता है, ३ रुधिर तथा आसिप सौके दुग्ध जैसा सफेद दोता दे और ४ आह्दार--नाहार कोड दखन लीं पाता | चर ७ दम ये ही चार अविशय, समवायांगसन्रके ४८-४९ ( लिखी हुई प्रतिकें ) पत्रमें, ३४ अतिशयोक्त अन्तगत इसतरह हिसे है; का “नितमयनिरुददेदा सापलट्टी, सोखीरपंडर पंससोणिते, पउ- मुलगंपिए उस्तासनिस्सासे, पच्छने आदारनीहारे अदिस्से . मंसचकबुणा ” 0 ही न७ भ््झि अधः--निरासय तथा नि्मठशरीरवाल, गोदुर्ध जैसे सफेद मांस-रुधिरवाढे, कमछ जैसे. सुगंधित श्वासोच्छवासवाढे, तथा जिनके आहार-नीदार चमेचश्ुसे न दीख पढ़ें । हु हि ४ डी 94 1 अब बतछाइये; भीखमजीर् ' ऊपरकी बातें पाइ जाती थीं ? | ७-५ दी (७4 ३ जब नहीं. पाइ जाती थी, तो फिर उसके * जन्मकल्याणक कहदनेवाला सहामृषावादी नहीं सो और क्या ? | अस्तु, अब आगे - ४ पढें | सीखमजीन ढूंढकसाघु रुगनाथजीके पास दीक्षा तो छेठी, परन्तु उसको पीछेसे बहुत पश्चाताप होने छगा । इसके सनसें अनेक प्रकारकी शंकाएं होने छयीं । उन साघुओंके आचार-विचारोंकों देख करके इसके सनसें निचार हुआ कि से शुद्ध साग पकड़ क्यांकि दूसरी ढाखके प्रथम दोहेम कहा है।-




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