वीर संन्यासी श्रद्धानन्द | Veer Sanyansi Shradhanand

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Veer Sanyansi Shradhanand by रामगोपाल विद्यालंकार - Ramgopal Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा अध्याय | चर्मेबककरोडनस्टा बचपन अर शिक्ताका आरम्भ । लीनय् टनकाएएएएल्‍एय होनहार बिरचानके, होत चिकने चिकने पात 1” ऊपर लिखा जा चुका हैं कि लाखा नानकचन्दुजीकों मेला- घाट में अपने घर छठी सन्तान उत्पन्न होनेका समाचार मिला था | इस चालकका जन्म फालगुन कृष्ण चयोदशी संवत्‌ १६१३ विक्रमीके दिन हुआ था और नाम इसका मुन्शोराम रखा गया था। जब मुन्शीरामके पिता चरेलीसें पुलीस लाइन्सके इन्सपेक्र बन गये तव बह अपनी माता थौर यड़े भाइयोंके सहित चरेलीमें झपने पिताके पास भा गया । आर इस कारण चालक मुन्शी- रामका दसपन चरेठी और उस प्रान्तके उन अन्य जिलोंमें व्यतीत हुआ जिनमें कि उसके पिताकों नौकरोके खश्चन्ध्ें जाना पड़ा । बरेली पहुंचने पर मुन्शीरामकी अवस्था लगभग तीन वर्षकी थी और लाला नानकरन्दजी बरेठोमें तीन बर्षे तक पुलीस लाइन्समें इन्सपेकूर ग्हे,इस कारण अपना आराम तलवबन छो डनेके वाद मुन्शी- रासके खेल कूदके प्रथम तीन बे चरेलीमें ही व्यतीत हुए । बरे- सीमें लाला मानकचन्दजीने छापने बड़े दो पुत्रोंको पढ़ानेके लिये एक मौलवी सादवकों नियत किया था । चालक मुन्शीराय




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