अमेरिका की राजनीतिक पद्धति और उसकी कार्य विधि | America Ki Rajneetik Paddhati Aur Uski Karya Vidhi

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America Ki Rajneetik Paddhati Aur Uski Karya Vidhi by डेविड कुशमन क्वायल - Devid Cushman Coyle

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हूँ दरें 3 बुडरो विल्सन ने श्रपनी पुस्तक “हिस्ट्री प्रंव द भ्रमेरिवन पीपल” भ्रर्थात्‌ पभेरिकी लोगों का इतिहास मे झदाज लगाया है कि झारम्भ के दिनो में ४० लाख मे से केवल १ लाख २० हजार व्यतियों वो मत देने वा भ्घिवार रहा होगा । झठारहवी शताब्दी में यह पद्लि भी भयानक जनत्री समझी जाती थी । श्रगले सौ वर्षा में मत देने का झधिकार अधिकाधिक प्रवार के लोगो को दिया! जाता रहा । पश्चिम की भोर वो सीमान्त या शीघ्र विस्तार होता गया श्रौर ज्यो- ज्यो नये राज्य बनते गये त्यो-च्या सीमान्तवासी लोगा वा प्रभाव देश की समानता की शोर धकेलता गया । सन्‌ १८६० तक प्राय सभी राज्यों ने इक्कीस वर्ष से ऊपर श्राथु के सब थारे लोगा को मताधिकार दे दिया था 1 गृह युद्ध के पश्चावू संविधान में नीग्रो लोगो को भी मताधिकार देते वा सशोधन कर दिया. गया, पर्तु बई दक्षिणी राज्यों ने नीग़ो लोगो के मत देने के मार्ग में बहुत सी बाधाएँ सफलता पूर्वक खड़ी कर रक्‍खी हैं । सन्‌ १६२० में सविधान में एक भर सशोधन करके ल्रियो को भी मताधिवार दे दिया गया । सेनेट ( उच्च सभा ) वो हाउस ( प्रतिनिधि सभा ) की झ्येक्षा जनता से अ्रपिक दूर रखने का विचार था । इसलिए संविधान मे यह विधान रक्खां गया था कि प्रत्येक राज्य के दो सेनेटर उसवे विधान मण्डल द्वारा चुने जायें । इसवा फल यह हुथा कि सेनेट साघारणतया हाउस की अपेक्षा अधिक परिवर्तन विरोधी रहने लगी । सेनेट में बहुघा सम्पस व्यक्ति होते थे झथवा ऐमे व्यक्ति होते थे जिर्हे बडे बडे व्यापारियों और महाजनों के साथ घनी सहादुभूति होती थी । परन्तु जनतबर वो श्रविवाधिक जन प्रतिनिधि बनाने का दबाव बढ़ता गया । परिवर्तन विरोधियों के विरोधी राजनीतिव: लोगों ने भी इस परिवर्तन को बढावा दिया । फल यह हुआ कि सन्‌ १६१३ में फिर संविधान वा सशोधन किया गया और राज्यों की जनता वो भ्रपने सेनेटर सीधे चुन लेन वा झधिवार दे दिया गया । सभू १६१३ से सेनटरों वी स्थिति, भपने राज्य के शासन का प्रतिनिधित्व करत के लिए वारिंगटन में भेजे गये राजदूत या प्रतिनिधि की ने रहकर, चहुत शुछ ऐसे बाप्रेस-सदस्य जैसी हो गयी है जिसकी पद मर्यादा बढा दी गयी हो ।




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