म्रक्ष कतिकम | Mrichachhakatika Series-89

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Mrichachhakatika Series-89 by डॉ जयशंकर लाल त्रिपाठी - Dr. Jayshankar Lal Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे मून्छकटिक दुश्य काम्य के भेद, उपभेद --वस्तु, नेता भौर रस के आधार पर किये जाते हैं । परम्तु झाधुनिक समीक्षक नाटक में इन तत्त्वों पर भी महत्त्व देते हैँ--कपानक, पाज, उनका भरित्रचित्रण, सदाद, देश तदा कास का निणंय, भाषा, शंतो दौर भधिनमपोग्यता मादि । इन सभी की दुष्टि से मूच्छकटिक की समीझा करनी छागइयक है। परन्तु इन पर दिचार करने के पहले इसके बिदादप्रस्त विषय *श्वथिठा' पर दिचार कर लेगा अच्छा है । मुक्षककटिक का रचपिता दद्चपि उपलब्ध सभी हस्तसेवो और प्रराशिठ सस्करपों की भूमिका मे मुक्षछकूटिक का रचयिता 'शुद्रक' तप को ही माना गया है। परन्तु बभी तक विज्ञान इसके रघयिता के विदय में सन्देह करते आ रहे हैं । इस सम्बन्ध में उप+ लग्ध मत बोर उनकी समीक्षा यहाँ प्रस्तुत है-- मुख्छक़टिक दण्डी की रचना है--पिषेस भादि का मत-- थी पिशेस महोदय का संत है कि मृच्छकटिक दष्डी की रघना है । उनका यह कहना है कि राजणेयर ने दण्डी के तीन प्रबन्ध माने हैं यो दष्डिप्रबन्धारच ब्रिु लोकेयु दिधुता: ।””* इन हीनों में (क) दशकुमार-चारेत आर (छ) काम्यादर्श के अतिरिक्त तीसरी रचना (ग) 'मृच्छकटिक' है 1 पिशेल से अपने मत के समपंन में ये तक दिये है-- (१) 'लिम्पहीव तमोध्ज़ाति दषंतीवाझन नम 1'* पहू पद उदाहरण के रूप में काव्यादर्श ( २२२६ ) मे है। यही पथ मृच्छकटिक के प्रथम धर (१1३४) में मी है । इससे दोनो रचनाओं का एक कर्ता प्रठीत होता है । (२) दशकुमार-वरित में सामाजिक अवर्या का जता वर्णन मिलता है बसा ही मूच्छकटिक में भी है। दोनो की यह समानठा भी दोनों का एक ही कर्ता होना सिद्ध करती हे 11 विशेत के उपयुक्त मत का समन मंकडानस श्ादि ने भी किया है! उपपुक्त मत का सग्दन दूसरे विद्वातो के सत में पिशेल के मत में कोई ठोस षायार नहीं है 'लिम्पतीद सर्वप्रथम भास के “बारदत्त' मे मिसता है। वहीं से अग्य कृतियों महू पथ तो १. राजर्णर २. काम्यादरों २८२९६, मु्छकटिक है।३४ ३. मूभ्छकटिक-भूमिका रे, मै, काले छू १७




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