हिन्दी - निरुक्त | Hindi Nirukt

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Hindi Nirukt by पं किशोरीदास बाजपेयी शास्त्री - Pt. Kishoridas Bajpeyi Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ हिस्दी-निस्कत बना है तो भी वर्णागम तो है ही । दोला झव्द के आदि में हि को आगम अनुस्वार का पर-सवर्ण न और अन्त के आ को ह्लस्व तथा नपंसक लिंग । तब दोल का वना हिन्दोल और उस से हिल्‍्दी का हिडोला । हिं का आगम स्पष्ट हैं । संस्कृत में दोला और हिन्दोल इन दो पथक दाब्दों की सप्टि सम्भव नहीं है। एक ही दाब्द को अनेकघा विकास अधिक युक्तिसंगत है । कारण स्वरूप तथा अर्थ की एकता स्पष्ट हूं भले ही कुछ विज्षेषता आती जाय । अर्थ की विज्ञेपत्ता ही तो एक चीज हैं । रे सम्बोधन में भी आदि में ए का आगम देखा जाता है व्रज- भाषा में पर कोमलता लाने के लिए-- एरे पाप मेरे । इसी तरह पुरवी बोली में रे के पूर्व ओ का आगम हो जाता है--ओरे । यह भोकह सकते हैं कि ए तया रे और ओ तथा रे का सहप्रयोग हो दो-दो सम्बोधन-दाब्दों को एक साथ बोलना कोई अचरज की वात नहीं--जब कि वाग-बगीचा और काला-स्पाह ं आदि एकार्थक दाब्दों का सहप्रयोग है । हमारा एक पंजाब में इक होकर हू. का आगम कर लेता -हिका॥ इसी तरह हमारा और वहाँ ओर के रूप में द्लस्व होकर महाप्राण ह का आगम करके वैसी कर्कंशता सम्पादित करता है- होर । कोमल बंगला भाषा हमार के हू को हटा देती है वहाँ पंजाब की मर्दानी भाषा के इक तथा ओर में ह का आगम कर लेती है। मानों भापा की कोमलता-कठोरता का सम्पादन-कार्य ह के ही जिम्मे आ गया हो । . पद के अन्त में भी व्यंजन का आगम होता है। संस्कृत के मध शब्द में र का आगम होकर हो मंधुर बना है । हिन्दी का सुथरा शब्द भी र के अन्त्यागम से ही बना है जो आगे स्पप्ट होगा । वत्स से शबच्छ बनकर अन्त में र का आगम हुआ और उस र में हिन्दी की पूं-व्य॑ंजक 1 विभक्ति लगकर तथा बीच के च का लोप होकर वछरा बना जो मेरठी बोली ने वछड़ा वनाकर ग्रहण किया । र की अपेक्षा ड कठोर है और कठोर पंजाबी भाषा के पड़ोस में हिन्दी की मेरठी बोली है । यहाँ तो वहन भी भेण बन जाती है । न को कामलता यहाँ ण की कठोरता में वदल जाती है जब कि ब्रज तथा अदध आदि की बोलियों में कारण रण भूषण आदि के




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