जैन तत्त्व कलिका | Jain Tatva Kalika (1982) Ac 5703
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
648
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्पादकीय | १३
सब उदाहुरणों पर से फलित होता है कि तत्त्व को असुक संख्या में बाँधा नहीं जा
सकता । प्रत्येक वस्तु के साथ तत्त्व का प्रश्न अनुस्यूत है ।
तसवों को संचवा
वास्तव में तत्वों की निश्चित संख्या नही है । तत्त्व कितने हैं? इस प्रश्न का
उत्तर आगमो और विविध ग्रन्थों मे विभिन्न रूप से दिया है ! एक शैली के अनुसार तत्त्व
दो हैं--१. जीव और २ अजीव । ट्रसरी शैली के अनुसार तत्त्व ७ है-- १. जीव,
२. अजीब, ३ आखब ४. वन्ध, ५. सब्र, ६ निर्जरा और ७. मोक्ष । तीसरी शैली
के अनुसार तत्वों की सख्या पुण्य और पाप सहित नौ हैं । उत्तराध्ययन आदि आगम
साहित्य मे तीसरी शैली उपलब्ध होती है । भगवती, प्रज्ञापना आदि में जहाँ श्रावकों
के ब्रतधारणोत्तर जीवन का वर्णन आता है, बहाँ ११ तत्त्वो के जानने का उल्लेख
आता है । यथा--१. जीव, २. अजीव, है. पुष्य, ४. पाप, ५. आख्रव ६. संवर ७.
निजंरा, ८ क्रिया, € अधिकरण १० बन्ध और ११ मोक्ष में कुशलता ।
वास्तव मे तत्व दो ही हैं--जीव भौर अजीब । पुण्य से लेकर भोक्ष तक के
सात तत्व स्वतन्श्न नही हैं, वे जीव और अजीब के अवस्था-विशेष है ।
देव, गुरु और धर्म : तीन तत्व
दूसरी हषिट से देखा जाए तो १. देव २. गुरु और रे. धर्म ये तीन तत्व
मोक्षप्राप्ति में सहायक एवं साधक है । देव और गुरु, थे जीव के ही मुक्त,और कमं मुक्ति
के लिए प्रयत्नशील, दो रूप है । अब रहा धमंतत्व --जिसमे सम्यग्दशंन ज्ञान-चारित्र-
रूप लोकोत्तर धर्म तथा नोति-धरमं-प्रधान लोकिक धर्मों का समावेश हो जाता है । साथ ही
श्रुतधर्म में उपयुक्त नी तत्व, षड्द्रव्य, प्रमाण, नय, निक्षेपादि तथा परिणामिनित्यवाद
आदि सब तत्वों का समावेश हो जात। है, चारित्रघ्म मे अहिसा, सत्यादि सभी शाश्वत
धर्मों का समावेश हो जाता है । अस्तिकाय धर्म में पंचाह्तिकाय, आत्मवाद, लोकबवाद
कमंबाद और फ्रियावाद आदि का समावेश हो जाता है ।
देव और गुय तत्व
देवतत्व मोक्षसाघक के लिए इसलिए ग्राह्म हैं कि उसके बिना मुमुक्रु के सामने
कोई आदशें एवं व्यवहार का सेतु नही रहता । देवतत्व में मोक्षप्राप्त सिद्ध या वीत-
राग अहृन्त देव आते हैं, जो साधक की मोक्षयात्रा में प्रकाशस्तम्भ है और गुरुतत्व-
जिसमे आचायें, उपाध्याय और साधु आते है, सोक्षार्थी के लिए मोक्षसाघना के आदर
है। इन दोनों तत्वों को अपनाये बिना धमंतत्व को भलीभांति हृदयगस करना,
जानना और आचरित करना कठिनतर है । इसलिए स्वतत्वों के तत्वश तथा तत्व-
दर्शी देवाधिदेवों और धर्मंदेवों गुरुओं का सागंदर्शन घमंतत्व को सर्वागरूप से जानने
हेतु सितान्त आवश्यक है।
घमंतत्व को शाश्वत-जशाश्वत धारा
इस विश्व में कुछ तत्व शाश्वत है और कुछ अशाश्वत । धमंतत्व--जो कि
सीधा मोक्ष से सम्बन्धित शाश्वत के संगीत का मधुरलय है। परन्तु भगवान महावीर
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