कबीर और जायसी | Kavir Aur Jayasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ करोब कबीर की इसी जन्मतिथि को एक दो वर्ष के हेरफेर के साथ स्वीकार कर लिया है। इस तिथि ( सं० १४५४५ या १३९८ ई० ) से कबीर के रामानन्द का शिष्य होने में भी कोई भ्रड़चन नहीं पड़ती । नाम--'कबीर' के नाम को लेकर भी श्रनेको किवदन्तियाँ प्रचलित हैं । एक किंवदन्ती के शभ्रनुसार कबीर का जन्म हाथ के अंगूठे से हुश्रा था । अतः उन्हें “करवीर” कहा गया । यही शब्द बिंगड़कर “कबीर हो गया । दूसरी किवदन्ती के अनुसार कबीर के जन्म के बाद, नामकरण करते समय, जब काजी ने कुरान खोला तो सबसे पहले उन्हें “कबीर” शब्द ही दिखलाई पड़ा; ग्रतः उन्होंने बालक का यहीं नाम रख दिया । भ्ररबी में “कबीर” दाब्द का अ्रथ॑ “महान” होता है । यह प्रायः ईर्वर के विश्षेषण रूप में प्रयुक्त होता था | हो सकता है, महानता के कारण ही इन्हें ईश्वर का विशेषणवाची नाम “कबीर' दे दिया गया हो । “कबीर के जीवन को देखते हुए, उनका यह विशेषण॑वाची नाम उपयुक्त लगता है । जन्म-स्थान--कबीर के जन्म-स्थान «को लेकर पर्याप्त विवाद हुआ है । इनये जन्म-स्थान के रूप में तीन स्थानों के नाम श्राते हैं--(१) मगहर,; (२) काली , (३) झाजमगढ़ जिले का बेलहरा गाँव । इन ६ तीनों स्थानों में बेलहरा गाँव के लिये दिये गए तक भ्रघिक शसक्त नहीं हैं, भ्रतः विद्वानों ने इसे कबीर का जन्म-स्थान स्वीकार करने में श्रसहमति प्रकट की है । अब रह जाते हैं दो स्थान--मगहर श्रौर काशी । मगहर को जन्म-स्थान स्वीकार करने वाले विद्वान अपने मत की पुष्टि में 'कबीर” का ही एक दोहा उद्धृत करते हैं-- तोरे भरोसे मगहर बसिझौ, मेरे मन तन की तपन बुकाई । पहले “दरसन' मगहर पायो, पुनि काशी बसे श्राई ॥। इस दोहे के “दरसन” शब्द पर पर्याप्त विवाद है, यदि इसका श्रथे “दिखायी पड़ना' या जन्म लेना माना जाये तो कबीर का जन्म सगहर में माना जा सकता है, परन्तु यदि “दरसन' का अ्रथ॑ 'ईइवर दद्न” है, तो फिर कबीर वहाँ 'देव ददन” के लिये गये होंगे | डा० गोविन्द त्रिगुणायत इस दोहे के झभ्राघार पर कबीर का जन्मस्थान “मगहर' ही £स्वोकार करते हैं । इसके विपरीत 'कबीर' की रचनाझों में बार-बार “काशी” का उल्लेख हुमा है। इनके जन्म के विषय




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