सुजान - चरित्र | Sujaan-charitra

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Sujaan-charitra by श्री राधाकृष्ण दास - Shri Radhakrishna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कबि-परिचय सूदनजी ने श्रन्थारंभ में मंगलाचरण के डनतर पहले संस्कृत के प्रसिद्ध कवियों तथा महर्षियोँ का णुणगान करके तब हिंदी के दम सपा, कर तैकिरंदमद, . पनतमवीयाामन नानिकेकिलीििपिनिनेललफॉकननमगानियत पक सो पचहत्तर कवियों का नामोल्लेख किया है । ये नाम समयानु- क्रम से नहीं हैं । सूदन जी इन कवियों के परवर्त्ती या समकालीन थे ।* कवियों के नाम-की तन के उपरांत इन्होंने केवल एक सोरटे में ब्पनो परिचय दिया है, जो इस प्रकार हैः-- 'मिथुरापुर सुभ घाम माथुर कुल उत्तपत्ति बर । पिता बसंत सुनाम सूदन जानडु सकल कथि ॥ इससे केवल यहद पता चलता है कि ये_ माथुर ब्रोह्मण थे श्र इनके पिता का नाम बसत था । ! इन्होंने अपने जन्मस्थान के राजा बजाधिप बदनसिंह के घीर पुत्र सुजानसिंह ही की ख्याति को कबिता में ढाला है । ये उनके श्राशित रहे होंगे तथा उनके वणुन से ज्ञात होता हैं कि वे इन युद्ध में सम्मिलित भी रहते थे. सूदन जी ने अपना परिचय देने के झनतर फिर एक छुप्पय में चौबीस झअवतारों तथा पक कवित्त में कृष्ण जी का गुणगान रूपी मंगलाचस्ण कर अपने चरित्र-नायक का वंश-वर्णन किया है। इन्हे मंगल-पाठ की घुन सी सवार थी जिससे प्रत्येक परिच्छेद के पहले इन्होने नया मंगलाचरण दिया है । इस ग्रंथ में इन्होंने एक नवीन प्रथा यह भी की है कि प्रत्येक अंक के श्रत में निम्नलिखित दरगीति छुंद दिया है जिसके प्रथम तीन पद वही रहते है, पर चतुथ पद झध्याय की: चर्सित कथा के अनुसार बदलता रहता हैः-- मुवपाल-पालक भूमिपति बदनेस-नंद खुजान हैं । जाने दिली दल दव्खिनी, की ने मद्दा कलिकान हैं ॥ |




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