उत्तराध्ययन सूत्र | Uttaradhayayan Sutra (1972) Ac 5683

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
496
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उत्ताराध्ययन सूत्र : एक अनुचिन्तन
-बिजयसूनि, शास्त्री
आज समय भा गया है कि हम एकता की भावना में एकत्रित हों । ऐसी एकता
को यह समृद्धि समेटती है, जिसमें दूसरे घामिक विश्वासों की धार्मिक यथाथंताए नण्ट
न हों, बल्कि एक सत्य की मृल्यवान अभिव्यक्ति के रूप में संजोयी जाएं । हम उन
यथार्थ और स्वत: स्फृत॑प्रवृत्तियों को समझते हैं, जिन्होंने विभिन्न धार्मिक विद्वासों
को रूप दिया । हम मानवीय प्रेम के उस स्पर्श, करुणा और सहानुभूति पर जोर देते
हैं, जो घामिक आस्थाओं की कृतियों से भरी पड़ी है । घामिक आयाम के अतिरिक्त
मनुष्य के लिए कोई भविष्य नहीं है । धमं की तुलनात्मक जानकारी रखने वाला
कोई भी व्यक्ति अपने सम्प्रदाय के सिद्धान्त में अनन्य आस्था नहीं रख सकता । हम
जिस संसार में श्रम करते हैं, उसके साथ हमें एक संवाद स्थापित करना चाहिए ।
इसका अर्थ यह नहीं, कि हम धर्मों को लक्षणहीन एकता के लिए काम करें । हम इस
भिन्नता को नहीं खोना चाहते, जो मूल्यवान आध्यात्मिक अन्तह ष्टि को घेरती है ।
चाहे पारिवारिक जीवन मे हो, या राष्ट्रों के जीवन में, या आध्यात्मिक जीवन में,
यह भेदों को एक साथ मिलाती है, जिससे कि प्रत्येक की सत्यनिष्ठा बनी रह सके ।
एकता एक तीव्र यधाथं होना चाहिए, मात्र मुहावरा नहीं । मनुष्य अपने को भविष्य
के सभी अनुभवों के लिए खोल देता है । प्रयोगात्मक धर्म ही भविष्य का धर्म है ।
घामिक संसार का उत्साह इसी ओर जा रहा है ।”'
“व्तमान युग में धरम के नाम पर अनेक विवाद चल रहे हैं, अनेक प्रकार के
संघष सामने भा रहे है । ऐसी बात नहीं है कि अभी वतंमान में ही यह विवाद और
संघष उमर आए है, प्राचीन और बहुत प्राचीन काल से ही धमं एक विवादास्पद प्रइन
रहा है । धर्म के स्वरूप को समझने में कुछ भुलें हुई हैं ।
मूल प्रदन यह है कि धर्म क्या है ? अन्तर में जो पथित्र भाव-तरंगें उठती हैं,
चेतना की निमंल धारा बहती है, मानस में शुद्ध संस्कारों का एक प्रवाह उमड़ता है,
1. डॉ० राघाकृष्णन कृत 'आधुनिक युग में धर्म'--पु० € ४-५ ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...