मांझल रात | Manjhal Raat

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Manjhal Raat  by लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत - Lakshmi Kumari Chundawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मांझल रात 1 लुगायां छाजां पे ऊभी जांत देखवाने उड़ी करी, सोड़ा पोसाकां कीघां, जांन रे साम्हा जावाने श्रमल पान री मनवारां करता त्यार व्हेयरिया, सोढ़ीजी री मां वांस री कामडइ़यां वांघती सासू भ्रारती जोड़वा में झापरी सारी कारीगरी लगायरी । सोढ़ीजी ने वांरी प्ाथण्यां सिसगाररी, ललाट पे केसर री खोक काइ्यां, हाथ में कांकस डोरड़ा बांध्योड़ी ऊजठ दन्ती सोढ़ी साथण्यां में यू लागरी जांण तारामंडछ में चांद । सोढ़ी फूलमदे रे हिया में उथछ पुथठ न्हेयरी ज्यू ज्यू जांन श्रावा री बेछां ब्हे ज्यू' ज्यू ्राणुंद ने भय रा वेग सू' छाती घड़घड़ कररी । साथप्यां रे लार॑ डागठा पे जान देखवा ने चढें श्रर सरमाय पाछी नीची उतर जावे । ऊंची चढ़ 'नीची ऊत्तरू ए सइयां जोवू ए भालेठा री वाट सहेल्यां.. ए प्रांवो मोड़ियो जांन रा नगारा सुण्या, सूरज री किरणां में भाला भकक्या, घोड़ां री टापां श्र हींस सुखी, लुगायां देखण ने श्रागती एक दुजी रे माथे पड़ती, गोखड़ां में, छाजां पे जाय चढ़ी । श्राग झा पावूजी रा भाई भतीजा ने परवार, छोगा कलंगी लगायां, श्लल वछेरा नचावता, बांका मूडा रा सुरंग, कुमैत, श्रवलक घोड़ा ने एकी वेकी कराता पाया । “जांन तो रूपाछी है । घोड़ा चोखा सिणगारियोड़ा है। वीद रूपाछो घर वतावै, वींद ने देखवा तो दो ए ।” लुगायां एक दूजी सू वातां करे । डाव जीमणं चांदा डामा रा घोड़ा, वीचे केसर काठमी पै पावूजी सवार । केसर रमकम रमभकम करती चालरी, ढोल री ताठ माथे केसर रा नेवर भराक भऋरएक वाजरिया । कनौती उठायां, छाती फुलायां, मरोड़ मरोड़ बांकी करती गाबड़ पे केसवालठी री गू ध्योडी लटठथां हालती जायरी, देखवा वाठा केसर री चाल . दे देखता “ रैग्या । सेवरो वांध्योड़ा पाबूजी जांणे दूजो सूरज उग्यो व्हें । . चौड़ी छाती ने ऊची कीधां, एक हाथ सू वाग पकड़चां दूजा सू' मुजरो 'केलता पावूजी “केसर. री रास धीरे धीरे हिलावत्ता चालरिया जाएँ फौजां रो मां की घूमतो जायरियो । मोटी मोटी आंख्यां, . तेज सू दम दम करतों ललाट, कुन्दन री नांई दपदप करतों रंग । लांबी, लांबी मुजा सेल ने थांम्योडी । पसवाड़े लटकती तरवार । सोढा री नजर वींद पे जमी रीं जमी रंगी । श्रमराणां रा मिनख पाबूजी रो रूप देखता रा देखता रैग्या । सोढ़ियां छाजां पर सू' थूथकारा न्हांकण लागी, सोढ़ी री मां री छाती वींद रा वबखाणा सुख सवा हाथ चौड़ी व्हेगी, साथण्यां सोढ़ी ने छाती रे लगाय लीघी “कसी भागवान है थू ।” डावडच्यां दौड़ी दौड़ी वधाई दीघी “वाईसा, वाईसा, सुरज री किरण नै वीद री किरण एकसी है ।”'




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