आचार्य सायंद और माधव | Aachaayar Saayand-aa Aur Maadhava

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Aachaayar Saayand-aa Aur Maadhava by बलदेव उपाध्याय - Baldev Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथस परिच्छेद चिषय-प्रवेश भारतीय घम तथा तत्त्वज्ञान को भझली भाँति समभने के लिए वेदों का ज्ञान नितान्त आवश्यक है । यह वह मूल स्थान है. जहाँ से हिन्दू घम का स्रोत प्रवाहित इुद्रा तथा भारतीय तत्त्वज्ञान की विविध रहस्यमयी धाराएँ: निकलीं और जिसकी निरन्तर विविध विध सहायता से पुष्ट होकर ये भिन्न-भिन्न स्थानों से होती भिन्न-भिन्न रूप धारण करती हुई श्राज भी जिज्ञासु जन के चित्त को सन्तोप प्रदान कर रही हैं तथा भारतीय तत्त्वचिन्ता के प्रेमी विद्वानों को आनन्दित कर रही हैं । इस संसार में सबसे प्राचीन पुस्तक होने का ही महान गौरव इन्हें नहीं प्राप्त है, प्रत्युत संसार के रहस्यों को सुलभाने वाले, विभिन्नता सें भी एकता को झ्रनुभव करने वाले तथा परमाथ भूत श्राध्यात्मिक तत्त्वों के साद्चात्‌ करने वाले ज्ञान गरिमा सम्पन्न महनीय सुनियों तथा ऋषियों के द्वारा प्रत्यक्ीकृत तथ्यों के भारडागार होनेका भी ससुन्नत श्रेय इन्हें सन्तत प्राप्त है । इन वेदों के अथ का परिज्ञान हिन्दू धम के स्वरूप; आरम्भ तथा विकाश के समझने में कितना उपकारक है, इसे भारतीय सम्यता के प्रेमी जानते ही हैं । परन्तु इन वेदों के श्रथ का समभकना श्रत्यन्त कठिन कार्य है । इनका आवि- भाव इतने सुदूर प्राचीन काल में हुआ कि इनका श्रथ ठीक ठीक जानना ्यत्यन्त कठिन है । वेदों का सुदूर प्राचीन काल में श्राविर्भाव हुआ था, इस कारण से उनकी दुर्श्यता बनी ही हुई है । साथ ही साथ उनकी भाषा ने भी उन्हें दुरूद बना डाला है । इन कारणों का सम्मिलित परिणाम यह हुआ है कि भगवती श्रुति के गूढ झर्थों का ठीक-ठीक झथ करना नितान्त कठिन काये प्रतीत हो गया है | वेदों के थे समझने में तथा गूढ़ रहस्यों के उद्धाटन में ब्राह्मण अन्थों से सबसे प्रथम सहायता प्राप्त होती है। एक प्रकार से ब्राझ्मणग्रन्थ




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