सदयवत्स वीर प्रबन्ध | Sadaivats Veer Prabandh

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Sadaivats Veer Prabandh by डॉ मंजुलाल मजमुदार - Dr. ManjuLal Majmudar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोद्घात 'सदयवत्स वीरप्रबन्ध' का पहला परिचय- प्रस्तुत प्रबंध के अस्तिस्व का पहला उल्लेख करने वाले श्री चीमनलाल दरलॉल महोदय थे। ई. स. १९१४५ (वि. सं. १९७१) में गुजरातके प्रख्यात शहर सुरत में आयोजित की गई (४५) पांचवी गुजराती साहित्य परिपद के समक्ष उन्होंने “पट्टण के ग्रंथ भंडार और उसमें बहुतायत रहा हुआ अपभ्रश एवं प्राचीन गुजराती साहित्य” (“पाटणना भंडारो अने खास करीने तेमां- रहेलु' अपभ्रज तथा प्राचीन गुजराती साहित्य” ) नम का एक बढ़िया निबन्घ पढ़कर सुनाया था । उसमें एक अ-जिन कवि “भीम की रचना (लिपि वि. सं. १४८८) सदयवत्स कहानी का उन्होंने ही सर्वप्रथम! निर्देश किया था 1 इसके पहले श्री काँटावाला से संपादित “साहित्य' मासिक पत्रिका के अगस्त ई.स. १९१४ (वि. सं. १९७०) के अ कमें आम्रपद्र (आामोद) जिला भरुच के कायस्थ कवि गणपति की रचना-कृति “माधवानल कामकं दला' प्रबंध” ( रचनाकाल वि. सं. १४५७४) कि,जो २ ५०० दोहा छंदका काव्य- ग्रंथ था उसके प्रति सबसे पहले श्री दलाल महोदय ने ही पाठकों एवं विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया था । श्री चीमनलाल दाल महोदय ने ही पट्ण के ग्रंथागार में से अपभ्र'दा' एवं प्राचीन गुजराती साहित्य के ग्रंथों का परिचय एक सुचिके रूपमें पहले एकत्र किया था । क्योंकि उनके पहले पट्ण के ग्रंथागार के साहित्यक ग्रंथोंकी सूचि (नोंध) या संकलित यादी तैयार करने के लिये डा० व्युलर, डा० पीटरसन, एवं प्रा० मसणिलाल न. इ्िंवेदी आदि महानुभावोंने प्रयत्न किया था । उनको यहाँके ग्रंथागारके संरक्षकों- का सहकार प्राप्त नहीं हुआ था । किन्तु श्री दलाल महोदय, स्वयं जिन होने के नाते, उन्होंने उन ग्रंथागार के संरक्षकों का सहकार एवं सद्भाव प्राप्त कर लिया था । और अत्यंत परिश्रम करके यहाँ के (पट्टणके ग्रंथा- (न)




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