भारती - पद्ध - धारा | Bhartiya Padh Dhara

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Bhartiya Padh Dhara by डॉ. मुंशीराम शर्मा - Dr. Munsheeram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्शू कहां खजूर वडाई तरी, कल कोई नहीं पावे । ग्रीखम रित झब ग्राइ तुलानो, छाया कास न झावे ॥ अपना चतुर झीरको सिखवे, का्मिनि-कनक सयानी 1 कहूँ कबरी सुनो हो सन्तो, राम-चरण रति मानी ॥ (ष्णे मैं कारें बूमों झपने पिया की वात री । जान सुजान प्रात-प्रिय पिय दिन, सबे दटाऊ जात री 1 झासा नदी अगाघ कुमति वहै, रोकि काहू पे न जात री । काम-क्रोध दोउ भये करारे, पड़े वियय-रस मात री । ये पाँचो झपभानके संगी, सुमिरनकों शलसात री । कहै कवीर विछुरि नहिं मिलिही, उयों तरवर विन पात री (शव भीजे चुनरिया प्रे म-रस दंदन । झारत साजके चली है. सुहागिन पिय म्पने को हूंटन ।* काहेकी तोरी वनी है चुनरिया काहेके लगे चाणे फूदन । पाँच तत्तकी वनी है चुनरिया नामके लगे फृदन। चढिये महल खुल गई रे किवरिया दास कवीर लागे भूलन 0 (१६) पिया मेरा जागे में केसे सोई री । पाँच सप्ली मेरे सपकी सहेली, उन रेंग रुंगी पिया रग न मिली री ॥। सास सयानी ननद देदरानो,




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