पंचन्द्रियचरित्र | Panchandriyacharitr
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री रामजी ॥
महात्मा स॒न्दरदासजी का चारिव ।
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हात्मा सुन्दरदासजी दिन्दी के पुराने कचियों में उत्तम श्रेणी के कि हैं
उसकी कचिता सग्स हह कर गंभीर है 1 उनके श्रन्थ नासा प्रकार के छन्द; .
श, पार, कवि, सर्वेय्रां आदि से परिपूर्ण हैं 1 दिन्दी के कवियों में
दाढू पर्थी सुनन सर्वशिरोमणि नानते हैं । शायद दिन्दी के अन्य रसिक
इस पदवी का अधिकार शुसांई तुलसी दास ही को देंगे; पर मेरी अल्प बुद्धि में ये दोनीं
मददात्मा चराचरी सही पदती पाले सोस्य हू । शुसइ जी की रामायण युक्त प्रदेश में चहुत
प्रचलित है । इसलिए शुसाई जी की महिमा बहाँ अधिक सुनने में आती है 1 पर सुन्दरदा-
सजी के कान्य बटथा साछुसन्तीं ही में प्रचलित ईैं; से साधारण में उनका प्रचार रामायण
की त्तरदद नहीं हुआ है । जब सुन्दरदासभी के अन्ब जच्छी तरह अचछित हो जायेंगे तब डनकी
भी कीसि हिन्दी-रसिफों में उसी प्रकार फैल जायगी ।
सुन्दरदासजी केवल कवि ही नहीं; किन्तु पट्लास्त्रीं के पूरे ज्ञाता थे-सांख्य, योग और
बेदोन के अद्रैत वाद में अति. सिपुण थे 1. कर्स-योग, भक्ति-योग और झान-योग को जिस
अकारसे इन्दींसे एदले पुल हिन्दी में दरसाया हैं उस प्रकार किसी दूसरे घन्धकार ने नहीं
फिया । इसलिए यास्त्रीय त्रिपयों के हिन्दी-म्रन्थकारीं में सददास्मा सुन्दरदासजी का आसन
सबसे प्रथम है । अपने भंक्तमाल में महात्मा राचबदासजी ने सुन्दरदासजी को शक्वराचार्थ्य
के बराबर चतलाया है
सुन्दर्दासजी का जन्म-समगय्र क्रिसी ले नहीं लिखा; पर अनुमान से संचत् १६५३
विक्रम में उनफा जन्म हुआ माठम दाता द। महात्मा सुन्दरदासजी ने अपने अन्त समय में
एक साखीं कद्दी थी । उसमें उन्होंने ५३ चर वही अपनी आयु चतलाई है । वह साखी यददहूं:--
सात चरस सी में घट, इतने दिन की देह !
सुन्दर आतम अमर है; देह पेह की पेह ॥।
संबत्ू १८८४ की लिखी ( नकछ की ) हुईं इनकी एक पुस्तक के अन्त में यें पद
मिलते हैं:-- कर
संत्रत सन्नह से छोयाला । कातिक की अए्मी उजाला !।
तीज पहरि बृद्दस्पति वार । सुन्दर मिल्यया सुन्दर सार ॥
इकती सी लि सणवे, इतने वरप रहन्त ।
स्वामी सुन्दरदास की; क्रोई न पायी अन्त ॥
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