पंचन्द्रियचरित्र | Panchandriyacharitr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री रामजी ॥ महात्मा स॒न्दरदासजी का चारिव । नएएएपएकररपाकीिफप०काााण हात्मा सुन्दरदासजी दिन्दी के पुराने कचियों में उत्तम श्रेणी के कि हैं उसकी कचिता सग्स हह कर गंभीर है 1 उनके श्रन्थ नासा प्रकार के छन्द; . श, पार, कवि, सर्वेय्रां आदि से परिपूर्ण हैं 1 दिन्दी के कवियों में दाढू पर्थी सुनन सर्वशिरोमणि नानते हैं । शायद दिन्दी के अन्य रसिक इस पदवी का अधिकार शुसांई तुलसी दास ही को देंगे; पर मेरी अल्प बुद्धि में ये दोनीं मददात्मा चराचरी सही पदती पाले सोस्य हू । शुसइ जी की रामायण युक्त प्रदेश में चहुत प्रचलित है । इसलिए शुसाई जी की महिमा बहाँ अधिक सुनने में आती है 1 पर सुन्दरदा- सजी के कान्य बटथा साछुसन्तीं ही में प्रचलित ईैं; से साधारण में उनका प्रचार रामायण की त्तरदद नहीं हुआ है । जब सुन्दरदासभी के अन्ब जच्छी तरह अचछित हो जायेंगे तब डनकी भी कीसि हिन्दी-रसिफों में उसी प्रकार फैल जायगी । सुन्दरदासजी केवल कवि ही नहीं; किन्तु पट्लास्त्रीं के पूरे ज्ञाता थे-सांख्य, योग और बेदोन के अद्रैत वाद में अति. सिपुण थे 1. कर्स-योग, भक्ति-योग और झान-योग को जिस अकारसे इन्दींसे एदले पुल हिन्दी में दरसाया हैं उस प्रकार किसी दूसरे घन्धकार ने नहीं फिया । इसलिए यास्त्रीय त्रिपयों के हिन्दी-म्रन्थकारीं में सददास्मा सुन्दरदासजी का आसन सबसे प्रथम है । अपने भंक्तमाल में महात्मा राचबदासजी ने सुन्दरदासजी को शक्वराचार्थ्य के बराबर चतलाया है सुन्दर्दासजी का जन्म-समगय्र क्रिसी ले नहीं लिखा; पर अनुमान से संचत् १६५३ विक्रम में उनफा जन्म हुआ माठम दाता द। महात्मा सुन्दरदासजी ने अपने अन्त समय में एक साखीं कद्दी थी । उसमें उन्होंने ५३ चर वही अपनी आयु चतलाई है । वह साखी यददहूं:-- सात चरस सी में घट, इतने दिन की देह ! सुन्दर आतम अमर है; देह पेह की पेह ॥। संबत्‌ू १८८४ की लिखी ( नकछ की ) हुईं इनकी एक पुस्तक के अन्त में यें पद मिलते हैं:-- कर संत्रत सन्नह से छोयाला । कातिक की अए्मी उजाला !। तीज पहरि बृद्दस्पति वार । सुन्दर मिल्यया सुन्दर सार ॥ इकती सी लि सणवे, इतने वरप रहन्त । स्वामी सुन्दरदास की; क्रोई न पायी अन्त ॥




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