मेरी जीवन - यात्रा भाग -१ | Meri Jeevan - Yatra Vol.-2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.62 MB
कुल पष्ठ :
305
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८९८ ई० 1 ३ अक्षरांरंग ७ नानाका जवाब या-ैठना तो सीखेगा । नानीकों भी पाठदाला भेजनेकी थात्त माननी पड़ी । क शुभ मुहूर्त देखकर शायद १८९८६० नवम्वर को एक दिन रामदीन मामा - के साथ मुझे रानीकीसराय भेंज दिया गया । नानाकी धारणा थी कि हिन्दीसे चर्दूकी कदर अधिक हैं । उनके एक फुफेरे भाई मुंसिफ़ होकर जवानी हीमें मर गये थे । मेरे लिये भी नानाकी नजरमें वैसी ही कोई सरकारी नौफरी थी । उर्दू पढावर आजमगढके मिदशन-स्कूलम अंग्रेजी पढ़ानेका उनका इरादा था । सैर - वह अपने इरादेमें कैसे असफल रहे यह आगेकी वात हूँ । जाड़ोंके दिन थे । रानी- कीसरायके मदरसेके हातेमें--जो कि एक कच्ची चहारदीवारीसे घिरा हुआ था- गेंदेके फूल खिले हुए थे । वहीं घूपमें टाटपर में बैठा रहता था । मदूधू भी मेरे पास बैठा होता । नहीं याद हम क॑ से अपना दिन काटते थे । नानाकी वात दुरुस्त थी में वहाँ बैठना ही सीख रहा था । शायद बहुत दिनों तक में रानीकीसराय नहीं जा सका । घा० महावीर या. भगवान् सिंह अपने घरके किसी मारपीटमें दामिल हुए । उनको सजा हो गयी । मदरसा बन्द हो गया । उसके बाद में कहाँ रहा कया करता रहा -इसपर स्मृत्ति प्रकाय नहीं डालती । हा १८९९ ई० के अन्तमे फिर रानीकीसरायके मदरसेमें दाखिल होनेसे पहिले एकबार कर्नलासे वडौरा गया था । गांवके ७ ८ लड़के वहाँ पढ़ने जाते थे में घायद सबसे छोटा था । मेरी आयुसे कुछ ही वड़े चचा विरजूका मुझसे बहुत प्रेम था । बडीरामें उदू नही मुझे हिन्दीका क-ख शुरू कराया गया ।. बिरजू खड़ियाकी स्याही बनाकर मुझे सिखलाते । गांवके जयकरण अहदीरकी एक टूंडी गायसे गांवके सारे बच्चे वहुत डरते थे । वह दौड़कर हमला करती थी । समेरे दिन चढ़े हमारा झुंद बडौरा जा रहा था । उत्तर तरफके ऊसरकी गायोमें टूंडी गाय भी है-इसे हममेंसे कइयोंको पता न था । टूडी दौड़ी हम लोग जिघर-तिघर भाग निकले । मेरे मय भर आइचर्यका ठिकाना ने था जब कि मेने दूंडीसे चार कदमपर ही भागनेकी जगह विरजूको अपनी नयी पीली धोतीकी लुंडी छिये बैठ जाते देखा । दूडी विरजूकी ओर ध्यान न दे हम लोगोंकी भोर लपकी लेकिन हम छोग उसकी पहुंचसे बाहर हो चुके थे । विरजू मुस्कुराते हुए हमसे जा मिले । पूछनेपर कहा- बढ हुए आादमीको गाम-वेल नहीं मारते । प्रत्यक्षके बारेमें सन्देहकी गुंजाइश कहाँ ? तो भी इसका तजस्वा करनेके लिये मुझे तो किसी टूंडीके सामने जानेकी कभी हिम्मत न हुई । १ नानाके.बड़े भाई शिवनन्दन पाठक़ें कनिष्ठ पुप 1 देखो परि० ४
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