समकालीन - आलोचना | Samkaleen Aalochana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समिसंगाडु के जो सैनिक थे, उनके झापस के सम्पढ्कें में वह काम झाती थी, इसलिये
फौजों के लिये भी इसको भनिवायं बनाया गया था । इसमें उनके लिखे व्याकरण
हूँ ।अगनजी राज के पहल कलकत्ते की हिन्दी बंगला से प्रभावित थी । हमारे हिन्दी
भापी प्रदेश में बनारसी हिस्दी काफी प्रचलित है, वदद धपना अलग ही रंग दिखाती
है । स्वाधीनता प्राप्ति के बाद दिल्ली की भाषा बिल्कुख बदल गयी । जुबाने दिल्ली
हवा हो गयी, भव सुनने को भी नहीं मिलती । अब वह कहीश्व ही गलो कु्चों में ही
सुनने को मिलती है । भव पंजाबी प्रभावित हिन्दी चल रही है। जो लोग कहते हैं
कि हिन्दी लादी जा रही है, वे लोग देखें कि यह पंजाबी प्रभावित हिन्दी कंसे पेदा
हो गयी । विभाजन के बाद सिन्धी भारत में श्राये और इससे हिन्दी प्रभावित हुई
है । प्रमृतलाल नागर की खुबी यह हैं कि उन्होंने हिन्दी के गैरमानक भापषा के
रूप जितने श्रपने उपन्यासों में इस्तेमाल किये हैं, इतने विसी ने नहीं मिपषे । उन्होंने
सिन्धी प्रभावित हिन्दी की भी मिसालें दी हैं। यह टिन्दी की शक्ति है जो तमाम
हिन्दी बोलने बालों को जोड़ती है श्रौर यह स्वाभाविक है कि दूसरी भाषा बोलने
वाला जब हिन्दी बोलेगा तो श्रपनी भाषा की कुछ रंगत उसमें लायेगा, रंग लग़ा-
थेगा, श्रपनी भाषा के शब्द उसमें नहीं दूसेगा जैसे भ्रनेक कांग्रेसी नेता कहा करते थे
कि ऐसी स्वदेशी भाषा गढ़ो, जिसमें सब भारतीय भाषाओं के शब्द होने चाहिये । '
ऐसा नहीं होता है वह श्रपनी वाक्यरचना की छाप नहीं डालेंगा । श्रपनी भाषा का
जो घ्वनि रंग है वह उसमें नहीं लगा देगा ? उस भाषा को सरल रूप देगा जिससे
उसको बोलने में झ्रासानी हो इत्यादि । यह आम मानक रूप है जो भारत में प्रचलित
है। इन तमाम गर मानक रूपों को देख के श्रव हिन्दी का जो शिष्ट रूप है, उसको
इतना साधारण बनावें कि इन लोगों को भी समभ भ्राये कि हिन्दी के प्रचार-
प्रसार का यहू रूप है । ये केवल हिन्दी की सेवा नहीं केवल हिन्दी साहित्य की सेवा
नहीं, हिन्दुस्तान में राजनीतिक जागरण ही रहा है, बह होना|है, उसके माध्यम से
८. जो भाषा बनेगी, उसकी कत्पना मैं किया करता हू कि वह हमारी जनपदीय बोलिमों
के बहुत नजदीक 'होगी, भ्राघी भोजपुरी ,ाधी ग्रवधी लिखो, जैसा,कि फणीश्वर नाथ
रेणु के उंपन्यासों में है बह भांपा लोगों के समभ में नहीं श्रायी । प्र मचन्दे की जैसी
, भाषा है कि वह झवधी की नकल नहीं करते लेकिन अवध की बोली के बहुत नजदीक
है। उनकी भाषा किसान अगर खड़ी बोली बोले तो वित्कुल वेसे ही बोलेगा जैसे होरी
बोलता है यह हमारा ब्ादर्श होना चाहिए । होरी से थोड़ा श्रांगे बढ़कर घोलोगे
तो थोड़ा परिवतंन होगा, वह बात अलग है ।'प्रेमचन्द की बहुत वड़ी खुबी यह है कि
चेह जनपदीय होकर भी हिन्दी का मोनक *रूप नंध्ट नहीं होने देते । हमारा एक
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