आज के कवि | Aaj Ke Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बर्तन घटित हो जाने की वजह से प्रगति और रफ्तार के इस युग से वे मेल नद्दीं खाते । रूढ़ि और संस्कार उनमें इंतने गद्दरे हैं कि जमाना बदल जाये, वहद खुद न बदलेगे । इसलिये वे जेसे श्रपनी प्राचीन ख्याति, सम्मान श्र कृतियों पर जुगाली कर रहे हैं और समभकते हैं साहित्य में गतिरोध श्रा गया है । यद्द बड़ा घातक दृष्टिकोण है । नयी पोढ़ी इससे भ्रमित होती है । सम्भवतया जिसे गतिरोध कद्दा जा रहा है वह विश्रम हो है। यद विश्रम भी दो क्ेत्रो में अधिक है--एक तो पुराने और बीच वाले (त्रिशंकु) साहित्यकारों में श्बौर दूसरे शोषक-वर्ग के प्रतिनिधियों में । प्रगति और परिवर्तन की तोव्रता ने यद्द विश्रम उत्पन्न किया हे । जेसे इम चकित हैं, किस रास्ते पर जायें। दूसरे यह, विश्रम श्ौर भटकाव जान बूक कर शोषक-वरग की श्र से पैदा किया जा रहा हें श्रौर गति- रोध की चर्चा की जा रद्दी हैं । साहित्य को प्रगति श्र रक्षा के रि.ये इमे इस प्रचार से बचना है । क्योकि दो सकता हे कि अमरीका की तरद यहाँ भी “भूतलेखकों” को पेदा किया जाये । अभिव्यंजना--यह सब कुछ नयी कविता के भाव-पक्त के सम्बन्ध में था । अब इसके साथ ही उसके कला-पक्त पर भी विचार करना आवश्यक है । वस्तुत: भाव और विचार दी काव्य की आत्मा और प्राण होते हैं, कला तो बादरो परिघान और सजावट का नाम दे । उसका सम्बन्ध भावों की भिव्यक्ति और भाषा से हे । अभिव्यक्ति की प्रभावों - त्पादकता श्रौर उत्कृष्ठता के लिये काव्य में 'लंकारादि का पूरा मदत्व और श्रावश्यवता है । किन्तु बात इतनी दी नददीं हैं । मुख्य प्रश्न यह है कि भाव और कला में प्रधानता किस तत्व की द्ोनी चादिये ? इसका एक ही उत्तर दे- भाव तत्व की । कला तो गौण हे । श्रमिव्यक्ति तथा उसकी शेली श्रौर भाषा सदैव भाव तथा विचार की अनुगामिनी होनी चाहिये, आगे चलने वाली नह्दीं । यदि दम कला को भाव के श्रागे रख कर चलेंगे जेसा कि श्रभिजातवर्गाय साहित्यकार करते हैं, तो दम बेल के झागे रथ जोठत॑ंगे । भ्रमिव्यंजना को समस्या न बनाया जाय । श्रनुभ्ूति की ( दस)




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