पौषध | Paushadh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
743 KB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९७ )
एसे ही पे उपाधयके वाहर वोलना, वहांपर “अणाघाडे
उच्चारे पासवसो झणाहिया से” और सो कदम दूर जाकर वोल ना,
पर “अदियासे” बोलना |
भावार्थ यह है किं शरीर की अशक्ति से वहां भी टट्टी
जाना पड़े पेशाव परठवना पड़े तो दोष न सगे ।
यह क्रिया देवसि प्रतिक्रमण किये पहले कर लेना उसे
मांडढा कहते है |
प्रभात में दिनका पोषध किया हो वो रातको फिर क-
९५. #७ ५ शशि
रना चाहे तो इरियावदही काउसग्ग वगरद सब कर * साय
करूं ? वहां पर वोलना कि में सज्ञाय में हूं, ओर तीनके वदूछ
एक नवकार गिनना, और पीछे वहुबेल संदिसाई, वहुवेल
कर सुं, पडिलेहण करे. मांढला प्रतिक्रमण भी करे ॥
फक्त रात्रि पोसह करने की विधि-
रात्रि पोसह करने वाले को पढ़िलेहण देवचंदन करना
होगा इस लिये एकाशनादि का तप कर दिन छते जर्दी
अाकर क्रिया करकें पोसह मभातकी विधि से उचरना-
पाठ “” जाव शेष टिवसंरचं ” उचरना.
रात्रि पोसद वाले पतिक्रमण करे और छे घड़ी ( ९॥ घं-
? ) रात जाने तक पढ़े गुण, जाप करे; पीछे संथारा पोरसी
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