पौषध | Paushadh

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Paushadh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९७ ) एसे ही पे उपाधयके वाहर वोलना, वहांपर “अणाघाडे उच्चारे पासवसो झणाहिया से” और सो कदम दूर जाकर वोल ना, पर “अदियासे” बोलना | भावार्थ यह है किं शरीर की अशक्ति से वहां भी टट्टी जाना पड़े पेशाव परठवना पड़े तो दोष न सगे । यह क्रिया देवसि प्रतिक्रमण किये पहले कर लेना उसे मांडढा कहते है | प्रभात में दिनका पोषध किया हो वो रातको फिर क- ९५. #७ ५ शशि रना चाहे तो इरियावदही काउसग्ग वगरद सब कर * साय करूं ? वहां पर वोलना कि में सज्ञाय में हूं, ओर तीनके वदूछ एक नवकार गिनना, और पीछे वहुबेल संदिसाई, वहुवेल कर सुं, पडिलेहण करे. मांढला प्रतिक्रमण भी करे ॥ फक्त रात्रि पोसह करने की विधि- रात्रि पोसह करने वाले को पढ़िलेहण देवचंदन करना होगा इस लिये एकाशनादि का तप कर दिन छते जर्दी अाकर क्रिया करकें पोसह मभातकी विधि से उचरना- पाठ “” जाव शेष टिवसंरचं ” उचरना. रात्रि पोसद वाले पतिक्रमण करे और छे घड़ी ( ९॥ घं- ? ) रात जाने तक पढ़े गुण, जाप करे; पीछे संथारा पोरसी




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