हिन्दी भाषा ज्ञान | Hindi Bhasha Gyan

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Hindi Bhasha Gyan by शिवकुमार शुक्ल - Shivkumar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६) श्रस्वस्थ है तो एक तिल भी पहाड़ हो जाता है । मन की मौतों का ही सारा व्वल है जिस प्रकार थके हुए शरीर के लिए विश्वाम शनिवायं है, उसी प्रकार थके हुए मन के लिए मनोरजन श्रनिवार्य होता है । जितनी थकान, उतना चिश्राम' वाली उन्ति बिल्कुल सही है, प्रत्युत विश्राम अधिक चाहिए, तभी तो नये सिरे से कार्य करने की स्कृर्ति प्राप्त होती है । मनोरजन के अभाव में, थक हुए सन को दु्दशा की कल्पना की जा सकती है । वास्तव में यदि मनुष्य का उचित मनोरजन न हो तो बह अनेक मानसिक एवं शारीरिक रोगों से पीडित हो जाय । इसलिए हमारे स्वास्थ्य के लिए मनोरजन आवश्यक ही नहीं, झनिवायं मी है । प्राचीन समय में मनोरंजन के झ्तेक साधन थे । संगीत श्ौर शप्रमिनय के विकास के पहिले, ममुष्य व्यक्तिगत और समूह-गत नुत्म-गान से अपना मनोरंजन कर नेता था । वाद्य यस्त्रों के प्रयोग ने उसके इस थझानंद में चार बाद लगा दिए । झादिम जातिया आ्ाज भी उसी प्राचीन ढंग से श्रपना समो- रजन कर लेती हैं। संगीत झ्ौर अभिनय के बिंकास ने मतोरजन के क्षेत्र में एक क्रान्ति उपस्थित कर दी । मवुष्य स्वभाव से ही संगीत भौर प्रभिनय का प्रेमी होता है । ययपि मनोरंजन का बहुत बड़ा सम्बन्ध, मनुष्य की रुचि से होता है धौर प्रत्येक मनुष्य की रुचि भिन्न हुआ करती है, क्योकि सस्कृत्त में एक कहावत है कि 'भिन्‍नरुचिष्ठि लोक तो भी संगीत और श्रमितय के संबंध में प्राय. सभी की रुचियों में एकता पाई जाती है । मध्यकाल में नाटक, नौटंकी, रास, कठपुतली श्रादि के रूपों में श्रभि- नये का बहुत विकास हुआ भौर उनसे समाज का पर्याप्त मनोरंजस हुआ । इपके अतिरिक्त ताश, चौपड़, दातरंज मादि घरेलू खेलों का भी मनोर॑जन के क्षेत्र मे एक महत्वपूर्ण स्थान था । पशु पक्षियों के खेल, दौड़ श्रौर लड़ाई मे भी बड़ा मनोर॑जन होता था । इसके श्रतिरिक्त कुश्ती झौर नदकला के करने श्र देखने का भी लोगों को बडा शौक था । मेलो झौर उत्सवों के श्रायोजन सामाजिक मनोरजन के एक प्रकार से अनिवार्य अंग थे । राजाओं सौर महाराजाप्रों के यहा सनोरंजन का विशेष प्रबन्ध था । वे बस्तुत' बहुत समर्थ थे । मद्यपान, यू त-क्रीडा, वेश्या-तृत्य भ्रार्ि का बहा बहु प्रचार था । कुछ राजा लोग शिकार में मस्त रहते थे । कुछ ने झपरें




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