जैन धर्म संक्षेप में | Jain Dharm Sankshep Men

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Jain Dharm Sankshep Men  by लख्मी चंद जैन - Lakhmi Chand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5. दश नौ और आठ अंगधारी सुभद्रा चार्य 6 यशो भद्राचार्य 18 भद्रबाहु द्वितीय. 23 लोहाचार्य 50 जब्त 6. एकांगधारी.... अर्हदब्लि 28 माघनदि 21 धरसे नाचार्य 19 पुष्पदताचार्य 30 भूतबलिआचार्य 20 ज्छ कुल वर्ष -.. 62+100+183+123+97+118-683 आचार्य सुभद्र के पदग्रहण पश्चात्‌ वर्ष 2 में विक्रम का जनम हुआ। विक्रम के शासन के चौथे वर्ष में भद्र बाहु ने धर्माचार्य का पद ग्रहण किया । परवर्ती शिष्य परम्परा (उत्तराधिकारी) सारणी इस प्रकार है - (भारतीय पुरावशेष 20 एव 21 परीक्षित अनेक पट्टावलियाँ) यदि हम कुद कुद के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने का समय ई०पू० विश्वसनीय मानते है तो इनका जन्म काल प्राय: ई०पू० 52 होगा, कारण कि मात्र इस प्रकार कुद कुंद अपने जीवन के चवालीसवे वर्ष में आचार्य हुए होगे। आचार्य कुद-कुद का जन्म स्थल क्या था और उनके जीवन कृतित्व का परिदृश्य क्या था? उनके जन्म स्थल के विषय मे कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है। हमे यहां भी मौखिक और लिखित परम्परा पर निर्भर रहना पडता है। (पहले) हम यह देखे कि इन परम्पराओ से कया कुछ उपयोगी सूचना मिल सकती है? पुण्यास्वकथा में कुंद कुंदाचार्य के जीवन का एक प्रसंग शास्त्रदान के संदर्भ में आया है। वह कथानक इस प्रकार है। “भरतखंड के दक्षिण देश मे पिडथनाडु नामक जनपद था। इस जनपद के एक नगर कुरूमराई में कारामुन्डा नामक एक धनी वशणिक (वैश्य) रहता था। उसकी पत्नी का नाम




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