जिन भक्ति आदर्श | Jinbhakti Adarsh

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Jinbhakti Adarsh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ु चदन जैसे बने वैसे ऊच प्रकार का जियादह कीमत का मग- बाना चादिए, यदि इसमें खर्च अधिक दोता दो तो यह खर्च कंशर कम खर्च करके निकाठ हेना चाहिए । बहुत लाठ केशर चढाना तो दूसरी तरदद भी ठीक नहीं, क्योंकि नहुत से बिम्वों पर इससे दाग पढजाते हैं 1 अथवा दविद्व या खडे पढ़ जाते हैं इत्र ठगाने के सम्बन्ध में भी यह वात ध्यान में रस पी चाहिए कि, जिस विस्व पर इत्र लगाना अनुकूल न हो वहा जरा भी लगाना मावइयक नहीं 1 ८न--भष पुप्पपूजा की बारी है । पुष्प-फूल दो प्रकार से चढाए जाते है , खाठी और हार | फूल, सुगधियुक्त, जिन की पड़ी न हटी हो ऐसे और सुशोमित होने के अतिरिक्त योग्य रीति से छाये हुए मी होने चाहिए । जो ख्री, खीधमे (ऋतु) के दिन भी नहीं पालती हो, ऐसी माल्नि या अन्य लियों क लागे हुए फूल तो कदापि चढ़ाने योग्य नहीं । इसके. सिवाय पुरुष भी विवेकपूर्वक लाया दो, बैसे फूल ठेने चाहिए । पंस्येक फूल को अच्छी तरदसे देखना, उसको ऊचा नीचा कर के हिाना, और फिर उसकी आनन्द उसन दो उतना जठ फवारे के समान उसपर छाटना चादिए, पुष्प को सतत धोने की जावर्यकता नहीं, इससे उसकी विरावना ही नहीं होती ऊिन्तु उसके भीतर रहे हुए, अपनी दृष्टि में न आए और हिलाने से




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