प्रवीण दृष्टि में नवीन भारत भाग - 1 | Praveen Drishti Men Naveen Bharat Bhag - 1

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Praveen Drishti Men Naveen Bharat Bhag - 1 by स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे प्रवीण दृष्टिमं नवीन भारत | लबसवदलयालररमदता्पिशवकिककाशपरभरसपतगासातकविे जप फिफ शा. कदससफसप्लीहसॉपफी मर्सिपिकसकिपएनिरीटसिस्मपौरिफफे-िफिवेक्र.. मवतितितितिशितसतिमिसिकोिं: प्रललगाममत्रतलकाालाातामंमयापतितमणिकरमशकासभनिमाररनकालमनक डी लिन शा तथा श्राध्यात्मिक तीनोंकी पूर्णतासे प्रूण होनी हैं । मे आग, श पर विचार करनेसे इन तीनोौकी पूर्णता देन झ्ाती हैं । झाधि भौतिक या स्थूल प्ररतिकी पूर्णताका प्रथम लक्षण यह हैं कि; यडाँ पर घड़ ऋतुश्रॉका विकाश ठीक ठीक होता हैं । दो दो महींनेके अनन्तर प्ररुतिका सूर्यगतिके झ्नुसार ठीक ठीक परिंचर्तन होना उसी देशमं सम्भव दो सकता है कि जिस देशकी प्रति पूण हों । अपू्णां प्रऊृतिमें ऐसा कभी नहीं दो सकता हें वयाकि प्राहूतिक ब्पूर्णताके कारण सूर्यकी गतिका यथाक्रम प्रभाव, जिससे जि ऋतुझंका विकाश सम्भव होता हैं, नहीं पड़ सकता हैं झौर यहां कारण है जिससे उन देशो पड ऋतुोका शाविभावि यधाकम न होकर एक या दो ऋतुक्ा ही प्रभाव रहता हैं। कंबल इतना ही सहीं झधिकन्तु सारतीय प्ररृतिकी स्थूल पूर्गताका यह भी झौर एक झपूच॑ लच्चण है कि यहां पर पक ही समयसें भिन्न मिलन प्रातीमें मिन सिन्न ऋतुका विकाश रहता हैं, जिससे सिद होता हैं कि स्थूल प्रझुतिकी पूणता केबल भारतकी सम प्ररतिमं ही महीं परन्तु सारतकी व्यप्टि प्रहतिके झड़ अडमें भी व्यास हैं । जिस समय हिमा- लयके शीतमय प्रदेशोमें तुषारमय पचंत हेमन्त झौर शिशिर ऋतु श्रो के प्रबल पराक्रमका भऋणडा उड़ाते रहते हैं ठीक उसी समय सिन्घुदेशके _ सरस्थलमे दिवाभागमे गय्रीष्पऋतुका प्रभाव बना रहता हे श्रोर उसी . कालमे मेसूर, श्रादि देशोमें वसंत , झासाम श्रादि देशो में चर्पा श्रोर मध्य देशमं शरद्ऋतुका श्रानन्द बना रददता हैं । सर्थ सौन्दयंमयी प्रकृति माताके सब रमणीय अज्ञॉंकी परमानन्द केवल भारतवर्ष हो चिक खित है । प्रथिवीके यूरोप श्रादि देशॉमें श्वेतवर्णके मानव, अफिका व्यादि देशोमें ऊुष्णवशेके मानव श्र जापान चीन झादि देशीसें पीत चणंके मानव बहुधा दिखाई पड़ते हैं परन्तु भारतचर्षमें वैसी झासम्पूर्णता नहीं पाई जाती। इस पवित्र झारयजातिकी मातृभूमिमें उज्ज्वलगौर वर्ण, रा




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