अद्वैतादर्श | Adwaitadash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ति-जीव-पुनजेन्म-बंध-मोक्षादिकी भी चर्चा की गई है ६5 पूवाक्त ग्रंथ, मत-पंपांके कारणबरादमें हैं. अर्थात सूछ तत्वोंके, स्वरुप ओर उनके परिणाम-फल-के संबंधी हें कायवादका चचापर नहीं है. १-१३ दे २स १९३९ तक. यद्यापे कितनेक आगूही, स्वार्थी, हीं विश्वासी, लाकंष्याग्रसद्‌, लोभी, अज्ञ, अविद्वान, अतारन्ु, वा अभि मानी भाई ग्रथाकों वांचक कदाचित्‌ निंदा पर उतरके निंदक ठे रावग; तथापे निंदा स्तुतिका मूल मुख्यत१ मान्य,-सः्ाई,- नीयत ,- परअज्ञातता,-संबंध,-फन,-ओर लाभ हानीके उपर निभर हे; अत में उनकोभी त्वच्छ टृष्टिसि नहीं देखना चाहती चारकों चोर कहना, सपें अग्नि वगरेके दोष जनाना, दे ष्य-मेत्र-पुत्रादेको के सामने दुष्टांके दोष दरसताक उनको उनसे बचाना, बुर काय॑ करते हुयेको पकडना, : पदार्थोके गण दोष क थन करना, राजा वगरेके दोष गुणवाले इतिहास लिखूना-इत्यादि यधाथ निंदा स्तुति करने वाले दोषपात्र-निंदक-वा वोह कथन 'नदा नहीं है. यथा राम, कृष्ण, व्यास, शंकर, बद्धै. महावीर, बाइबल-कुरान-पुराणकत्ता, दवता वगेरोने नामभी लेंलेके परदोष कथन कस. है, उनमें जा यथाथ हे सो निंदा नहीं मानीजाती, किंतु साहुकारको चोर कहना, वा सर्प समान निष्प्रयोजन फकेंसी दूसरे निरपराधीकीमी हानी करना वा चोरकोभी ' साहकार कहना पाप-निंदा-त्याज्य कम है द जो उक्त व्यवहार न मानाजाय, तो सच्ची निंदा स्तुतिके _ दिना जीवोनति राज्य व्यवहार, प्रह्मत्तनिद्त्ति मात्रका उच्छेद होके हानी ओर जीवन व्यवहारकी अव्यवस्था होजाती हें; अतः दंभी कर्पीटिया समान मझको इस प्रसंग कोइ पिथ्या दोष आरों , पक्का भय नहीं हे.




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