आंसू | Aansoo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हक पद कवर तरुण कवि “अनिल कुमार ने भी उसका मधुर मराठी अनुवाद किया है, उसकी भी बानगी यहाँ दी जाती है ४” बस गई एक बस्ती है, स्मृतियों की इसी हृदय में नक्षत्र-लोक फैला है, जैसे इस नील सिलय में। (हिन्दी ) वसती ही एक. स्मृतींची, बसली या. छूदयापाशी | हा. ताराछोंक पसरला, जैसा. या. नीलाकाशी ॥ ( मराठी ) ये सब स्फुलिंग हैं मेरी, उस ज्वालामयी जलन के ! कुछ दोष चिन्ह हैं केवल, मेरे उस महासिलन के ॥ ( हिंन्दी ) यरि जलूत्या मम ज्वाछेचे, स्फुल्लिंग सर्वे हे भरले | माझधा त्या मिलन स्मृती थे, हे चिन्ह मात्र जे उरले। ( मराठी ) इससे प्रकट होता हूँ कि 'गाँसू नें द्विन्दी जगत को ही नहीं, अद्वित्दी आषा- माषियों कों भी “रस'-सिक्त किया हूँ । हिन्दी के गीति-काव्यों में “आँसू” को को सबसे अधिक प्रसिद्धि श्राप्त हुई हैं। 'प्रसाद' सजम कलाकर थे, वे अपने वातावरण से संकेत ले उसे अपनी मावनाओं से भरने की क्षमता ही न रखतें थे, भविष्य के चिस्तन को भी पहचान सकते थे ! इसी से 'कामायनी' में कीरी भावृकता हमें नहीं सिल्ती + विज्ञाव-युग का बुद्धिकाद थी, जो प्रगति का चिज्भु है, उसमें विद्यमान हैं । सामंजस्य-प्रवृत्ति होने से उन्होंने प्राचीन और आधुनिक सान्यताकों का एकीकरण किया है । इस प्रयत्न में कान्य-रस कहाँ तक सुरक्षित रह सका हैं यह प्रदन है । इधर उसके अंग्रेजी, रूसी और संस्कृत रूपान्तर भी प्रकाशित हुए हैं 1 फिर मी प्रसाद के काव्य में एक कमी हैं, जो उसका कदाचितू वैश्िष्ट्य भी कहा जा सकता है कि वह अधिकांश में संकेतात्सक होन के कारण हद काकुल्क | जनसाघारण में अविं होने ) की कमता नहीं रखता ! विद्वविद्यालयों से यदि उसकी मान्यता हट जाय, तो सम्भवतः औसत नुद्धि के व्यक्ति उसे विस्मृत करने में ही सुख अनुभव करें बह कथन है, पर निष्टुरसत्य हू 1 पुस्तक लिखते समय महू सजगता रही है कि प्रसाद”-साहित्य दुरूद न रह पाय 1 इसीलिए 'जाँधू की दुरूह समझी जानेवाली समस्त पंक्तियों की भीतरी भावनाओं को समझने की चेष्टा की गई है। क्योंकि 'भाँधू' ही. ऐसी रचना हूं लिसमें कि ने अपने को मफिक से अधिक व्यक्त किया हूं. यदि कवि को




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