श्री स्वामी रामतीर्थ उनके उपदेश भाग - 16 | Shri Swami Ramtirth Unake Upadesh Bhag - 16

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Shri Swami Ramtirth Unake Upadesh Bhag - 16 by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गैर मुदकों के तजरूबे, श्दे लाभ के मुक्ताविले में वे अपने प्राण बिलकुल कुछ नहीं सम- भते हैं | इघर हिन्दुस्तान में “शाप मरा तो जग मरा” की कहावत है । झगर किसी हिन्दुस्तानी से यह कहा जावे कि तुम्दारे मरने से दिल्दुस्तानियाँ को राज्य मिलता है, तुम मरना स्वीकार करोगे ? तो कया जवाब मिलेगा ? यह कि हम मर ही जाएंगे, तो राज्य श्ाने से फ़ायदा दी क्या होगा ? उफ ( हा शोक ) ! कसा घाणित स्वाथ भरा इुआ है ? प्येग से दो लायख से ऊपर आदमी हर एक मदिने मे मर रहे हैं, हज़ा आदि सत्य बीमारियों का हिसाब अलग हें, पर हिदुस्तान में ऐसा कोइ माइ का लास नहीं हे; जो श्रपने इस ्ण भुंगुर शर्रीर को झपने देशोपकार रूपी यज्ञ में हचन करदे, अर्थात्‌ देश की भलाई में अपने प्राण स्योछावर करदे; या पसीना दी बहांये, _ था थोड़ी तकलीफ उठाप । अपने मुल्क के लिये प्राण न्यो- छावर करना पक तरफ, पसीना बहाना एक तरफ, थोड़ी सकलीफ उठाना एक तरफ रहा, पर हम लोगों से देश की बुराई न हो, तो उतना ही ग्रनीमत है । अभी एक हिन्दुस्तानी लड़का जापान में पढ़ रहा था । एक दिन वह स्कूल-लायत्ररी ( पुस्तकालय ) से एक किताब श्रपने घर पढ़ने को लाया , उसे किताब मे एक नक्शा था पजसका बनाना उसका झत्यत ब्याचशयक था | पर उस लड़के ने उस नक्शे के बनाने की तकलीफ उठानी पसंद नहीं की झोर उस किताब से वह चक़े जिस पर नक्शा वना डुद्मा था; फ़ाड़ कर अपने पास रख लिया । कितने दिन के पश्चात्‌ एक जापानी लड़के ने चह फटा डुद्मा चक॑ देख लिया । उसने प्रिंसिपल से रिपोटे करदी श्र यह कानून पास होगया कि किसी हिन्दुस्तानी लड़के को लायबत्रेरी से कोई किताब घर पर पढ़ने के लिये मदी जावे ! श्रफ़्सीस ! झपने ज़रा स्वाथे के लिये, यु ज़रा




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