शिक्षा - मनोविज्ञान तथा प्रारंभिक मनोविज्ञान | Shiksha - Manovigyan Tatha Prarambhik Manovigyan

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Shiksha - Manovigyan Tatha Prarambhik Manovigyan by चन्द्रावती लखनपाल - Chandravati Lakhanpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 [माजिक है, श्रौर देश-कालानुसार समाज की श्ावश्यकताओं को देखकर निश्चित किया जाता है; उसमें मनोविज्ञान से कोई सहायता नहीं मिलती । परंतु समाज जो विषय शिक्षा के लिये निर्धारित कर देता है; उसके पढ़ाने की प्रणाली एकमात्र मनोविज्ञान पर अवलंबित है । जैसा कि ऊपर कहा गया है; मनोवज्ञान के दृष्टिकोण बदलने से शिक्षा-प्रशाली -के टृष्टिकोण भी बदलते हैं । उदाहरशाथ,; इस विषय को इस प्रकार पढ़ाना चाहिये कि आत्मा की शक्तियों में पुष्टि हो, अथवा मानसिक-शक्तियों का विकास हो; अथवा चेतना-शक्ति का प्राबल्य बढ़ें; झथवा जीवन-संघं घी कार्यों में व्यवहार-कुशलता की वृद्धि हो--अये शिक्षा-प्रणाली के शिन्न-मिन्न दृष्टिकोण हैं जो मनोविज्ञान के दृष्टिकोण के बदलने के साथ-साथ बदलते रहे हैं; और जिनमें से श्राजकल 'झंतिम दृष्टिकोशपर ही अधिक बल दिया जाता है | प्राय: घच्चों के झशिभावकों को शिकायत रहती है कि शित्ता- विभाग में रिथिरता नहीं, श्राज एक प्रणाली चलती है, तो कल दूसरी झ्रा जाती है। बात सच हैं; परंतु यह काम शिक्षा की उन्नति के लिए होता है; दुलमुल-यक्री नी से नहीं । मनोविज्ञान के उद्द श्यां और सिद्धांतों की परिवतन-शीलता के कारण इस विज्ञान को पुरानी पुग्तक, इस समय, के लिये पृणण उपयोगिता नहीं रखतीं; नवीन सिद्धांतों श्रौर नवीन उद्देश्यों को लेकर नवीन पुस्तकें झानी चाहिएँ। पाश्चात्य देशों में तो इस [कर प्रकी नवीन पुस्तकें निकलती ही रहती हैं; परंतु ये श्गरेजी तथा अन्य भाषाओं में होती हैं, शरीर हमारे हिंदी जानने वाले अध्यापक उनसे लाभ नहीं उठा सकते । यह हिंदी की एक त्रुटि है। इस भारी चुटि का दूरीकरण इस समय श्रीमती चंद्रावती लखनपाल ने यह पुस्तक लिखकर किया है। यह बद्दी देवी हैं




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