ग्रामीण परिवेश में शिशु मृत्यु एक सूक्ष्म स्तरीय समाजशास्त्रीय अध्ययन | Gramin Parives Men Shishu Mrityu Ek Suxm Stariy Samajashastriya Adayayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(अ) (ब) (12 (अ) (ब) (अ) यो: (11) निकाले कि <- कुछ कारक जैसे- रख-रखाव पर ध्यान, दुग्ध सम्बन्धी आहार की परिपूर्णता, बच्चे को रोग मुक्त होना, भाजन सामग्री पर कम खर्च, धर्म और जन्म के समय के मत का शिशु-मृत्यु से घनिष्ट सम्बन्ध है। नियोनेटल मार्टीलिटी को प्रभावित करने वाले कारक जैसे- रख-रखाव पर _ ध्यान, गैस्टेशन पीरियड, जन्म का स्थान, प्रसव के समय कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कर्मचारी की उपलब्धता, आहार की परिपूर्णता एवं जन्म का महीना आदि महत्वपूर्ण है। जबकि पोस्ट नियोनेटल मार्टीलिटी को जन्म का स्थान, दुग्ध सम्बन्धी आहार की पूर्णता और बच्चे का रोग मुक्त होना आदि कारक प्रभावित करते है। जकारिया, के0 सी० एण्ड पटेल, एस0 (7983), ट्रेग्डस एण्ड डिटरमिनेन्टस आफ इनफेक्ट एण्ड चाइल्ड मार्टीलिटी इन केरला” ने केरल राज्य के अध्ययन मैं निम्न निष्कर्ष दिए - सामाजिक, आर्थिक कारक, शिशु-मृत्यु के संदर्भ में सूक्ष्म महत्व के है। सामाजिक कारकों जैसे- माँ की शिक्षा अथवा उसकी जाति की तुलना में आर्थिक कारकों जैसे- भूमि स्वामित्व का अपेक्षाकृत कंम महत्व है। श्रीवास्तव, ' जे०एन० एण्ड सक्सेना, डी0एन, (1983), “इनफक्ट मार्टीलिटी डिफ्रेन्सियल एन इण्डियन सेटिंग, ने अपने अध्ययन में स्पष्ट किया - सामाजिक, आर्थिक स्तर, शिशु-मृत्यु के सम्बन्ध में अत्यधिक महत्व का है। डे शिशु-मृत्यु एवं हिन्दू जाति स्तर में विपरीत क्रम का. सम्बन्ध है। अर्थात्‌ कि




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