पद्म - पराग | Padm Parag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ग
:सतसई' के साथ-साथ अपने नये प्रेसमें ठेख-संग्रहके छापनेकी भी
माप्रद-पूर्वक प्रवछ इच्छा प्रकट की । उधर उन्हें, इघर मुम्हे; ज़रूरत
थी--“दोनों तरफ़ थी माग बरावर ठगी हुई--” यानी “ग्रज़
ुश्तकों” थी, वात तै हो गई । 'विहारीकी सतसईः ( भूमिका-भाग)
के पहले संस्करणकी छपी हुई कापी और सतसई-सशज्ञीवन
भाप्यके प्रथम खणडकी हस्तलिखित प्रति लेकर 'बेताव'जी रवाना
हो गये। पर लेख-संप्रदकी सामग्री अस्तन्यस्त--अव्यवस्थित
'अवस्थामें थी । चि० काशीनाथ शर्मानि छपे हुए लेखेकी कत्तरन--
( कर्टिग्स )--तो इधर उधरसे जोड़-चटोरकर जमा कर रक््खी
थीं; पर्,उनका कोई क्रम न था, चहुतसे लेख थे, जो अभी पत्रॉकी
फ़ाइलसे नक़ठ करने चाक़ी थे । काम देरका था, इधर जल्दी थी ।
मेरी घातमें मोत मुँद-वाए बैठी थी, लोग लेख-संप्रहकी ताकमें
'उत्सुकतासे मुद्द उठाए थे ! मजीव दाउत थी--
'मलिकुल-मौत अड़ा था कि में जां लेके ट्ूँ,
सौर मसीददाकी य ज़िद थी कि मेरी बात रहे !'
इसी दशामें लेखोंकी व्यवस्था करनेके लिये काशीनाथने
पत्र लिखकर पशणिडित हरिशंकर-शर्मा-( आर्य-मित्र-सम्पादक )-
'को सुरदावाद अपने पास घुढाया; भौर इन दोनोंने मिछकर लेख-
'संग्रहकी एक न्यवस्था की; जिन छेखॉको नक़ठ करनी थी, उनकी
'ढं ढ-भाठकर नक़ठ की, करफशन--कामा; फ़ूलस्टाप आदि ठीक
किया, लेखॉंका 'एक क्रम भी चैठाया, इस प्रकार अपनी . समफते
: इन्होंने लेखेकी प्रेस कापी तयार कर दी; लेखोंकी संख्या अधिक
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