पद्म - पराग | Padm Parag

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Padm Parag  by पारस नाथ सिंह - Paras Nath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ग :सतसई' के साथ-साथ अपने नये प्रेसमें ठेख-संग्रहके छापनेकी भी माप्रद-पूर्वक प्रवछ इच्छा प्रकट की । उधर उन्हें, इघर मुम्हे; ज़रूरत थी--“दोनों तरफ़ थी माग बरावर ठगी हुई--” यानी “ग्रज़ ुश्तकों” थी, वात तै हो गई । 'विहारीकी सतसईः ( भूमिका-भाग) के पहले संस्करणकी छपी हुई कापी और सतसई-सशज्ञीवन भाप्यके प्रथम खणडकी हस्तलिखित प्रति लेकर 'बेताव'जी रवाना हो गये। पर लेख-संप्रदकी सामग्री अस्तन्यस्त--अव्यवस्थित 'अवस्थामें थी । चि० काशीनाथ शर्मानि छपे हुए लेखेकी कत्तरन-- ( कर्टिग्स )--तो इधर उधरसे जोड़-चटोरकर जमा कर रक्‍्खी थीं; पर्‌,उनका कोई क्रम न था, चहुतसे लेख थे, जो अभी पत्रॉकी फ़ाइलसे नक़ठ करने चाक़ी थे । काम देरका था, इधर जल्दी थी । मेरी घातमें मोत मुँद-वाए बैठी थी, लोग लेख-संप्रहकी ताकमें 'उत्सुकतासे मुद्द उठाए थे ! मजीव दाउत थी-- 'मलिकुल-मौत अड़ा था कि में जां लेके ट्ूँ, सौर मसीददाकी य ज़िद थी कि मेरी बात रहे !' इसी दशामें लेखोंकी व्यवस्था करनेके लिये काशीनाथने पत्र लिखकर पशणिडित हरिशंकर-शर्मा-( आर्य-मित्र-सम्पादक )- 'को सुरदावाद अपने पास घुढाया; भौर इन दोनोंने मिछकर लेख- 'संग्रहकी एक न्यवस्था की; जिन छेखॉको नक़ठ करनी थी, उनकी 'ढं ढ-भाठकर नक़ठ की, करफशन--कामा; फ़ूलस्टाप आदि ठीक किया, लेखॉंका 'एक क्रम भी चैठाया, इस प्रकार अपनी . समफते : इन्होंने लेखेकी प्रेस कापी तयार कर दी; लेखोंकी संख्या अधिक




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