आलोचना : उसके सिद्धांत | Aalochna Uske Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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साहित्य : जीवन : समाज
संस्कृत भाषा में “साहित्य” शब्द अपेक्षाकृत नवीन है ।
इसके पहले 'बाडमय” का प्रयोग होता था । इसी 'वाड्मय' का
एक रूप “काव्य” था ।
साहित्य” शब्द का प्रयोग किस शताब्दी में आरंभ हुआ
और उसका क्रमश: विकास किस अरकार हुआ ? इन प्रक्षों का
उत्तर सरल नहीं है । सब से प्राचीन ज्ञात प्रयोग “साहित्य” का
भर्ताहरि ने ( ७ वीं शताब्दी ) में किया । “साहित्य” और
संगीत” एवं कला से विद्दीन मजुष्य को उन्होंने सींग और पूछ
ही पशु के समान माना है । “साहित्य, संगीत, कला चिद्दीनः'
में तीनों शब्द प्रथक्-प्रथक् हैं अथवा कला का सम्बन्ध केवल
संगीत से है था साहित्य और संगीत दोनों से है यहदद प्रामाणिक
रूप से नहीं कहा जा सकता । ६ वीं शताब्दी में छ्ाकर 'साहित्य”
का प्रयोग विद्या के लिए होने लगा और उस समय तक
प्रचलित चार विद्याओं--पुराण, न्याय-दशन, मीमांसा एवं धर्में-
शाख्र का सारभूत होने से पाँचवीं विद्या कहदलाया । राजशेखर
ने चारों चिद्याओं का उल्लेख 'पोरुषेय शास्त्र' के अन्तर्गत किया
है जिससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि साहित्य विद्या'
भी था और 'शास्रः थी ।
व्यक्ति-विवेक ग्रन्थ की टीका में 'शास्त्रः और साहित्य” का
अन्तर स्पष्ट कर दिया गया है । टीकाकार का कहना है कि
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