आलोचना : उसके सिद्धांत | Aalochna Uske Siddhant

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Book Image : आलोचना : उसके सिद्धांत  - Aalochna Uske Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[*१. साहित्य : जीवन : समाज संस्कृत भाषा में “साहित्य” शब्द अपेक्षाकृत नवीन है । इसके पहले 'बाडमय” का प्रयोग होता था । इसी 'वाड्मय' का एक रूप “काव्य” था । साहित्य” शब्द का प्रयोग किस शताब्दी में आरंभ हुआ और उसका क्रमश: विकास किस अरकार हुआ ? इन प्रक्षों का उत्तर सरल नहीं है । सब से प्राचीन ज्ञात प्रयोग “साहित्य” का भर्ताहरि ने ( ७ वीं शताब्दी ) में किया । “साहित्य” और संगीत” एवं कला से विद्दीन मजुष्य को उन्होंने सींग और पूछ ही पशु के समान माना है । “साहित्य, संगीत, कला चिद्दीनः' में तीनों शब्द प्रथक्‌-प्रथक्‌ हैं अथवा कला का सम्बन्ध केवल संगीत से है था साहित्य और संगीत दोनों से है यहदद प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता । ६ वीं शताब्दी में छ्ाकर 'साहित्य” का प्रयोग विद्या के लिए होने लगा और उस समय तक प्रचलित चार विद्याओं--पुराण, न्याय-दशन, मीमांसा एवं धर्में- शाख्र का सारभूत होने से पाँचवीं विद्या कहदलाया । राजशेखर ने चारों चिद्याओं का उल्लेख 'पोरुषेय शास्त्र' के अन्तर्गत किया है जिससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि साहित्य विद्या' भी था और 'शास्रः थी । व्यक्ति-विवेक ग्रन्थ की टीका में 'शास्त्रः और साहित्य” का अन्तर स्पष्ट कर दिया गया है । टीकाकार का कहना है कि




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