विश्वंभरा | Vishvambhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक
मैं जन्पा ही नही था
सिर पर नीला परदा
पैरो तले गदँ की परत ।
परदे पर जडे काँच के टुकडों में
जुगुनुओ की पलकों हिल उठी ।
अगि्निर्पिडो से
छूट निकले कच्चे कातिगण
बिछ गए दूघ की मलाई जैसे
भाप में वह परदा सुलग उठा
बिखर पड़े जड़े काँच के टुकडे ।
इस परत मे फूट पढे
बीजों के गर्भ-कोशो के
बिरवो की नसो मे खून भर उठा ।
टाँग टूटकर घरा पर गिरे मेघ्रो के
फिर से टाँगे उग भाई ।
इस परदे में जड़ मौन का
अँगडाई लेना ही क्या था
पख, खुर, सींग, दाढ
दिशागमों में ललकार उठे ।
मैं जन्मा ही नही था
मेघो ने कितनी प्रतीक्षा की होगी
विश्वंभरा | १७
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