अन्तर्पथ के यात्री आचार्य श्री नानेश | Aantarpath Ke Yatri Aacharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जद 1 कितनी जीवन्त प्यास है और उसके द्वारा वह आरात्म-साक्षारका र के भ्रनि- सा गये आनन्द मे किस प्रकार डूब जाता है, आदि जिज्ञासाश्रो को समाधान ग कृति के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है । रु लि पा ते की साधना है तथा सत्य-दर्न के विषय मे उनकी यह सुनिश्चित श्रव- (णा है कि “तमेव सच्च-तिसक जिणेहि पवेइय ।” वही सत्य ओर सशया- श्प बस गे प्र प ढ ला श्राचार्य प्रवर का जीवन साधना का जीवन है। उनकी साधना सत्य- [ है, जिसे जिनेश्वर भगवन्तों ने प्रतिपादित किया है । सत्य सत्य है, उसे तक॑ की कसौटी पर कसते रहना वेतुका है। सत्य [कये एव अविभाज्य है, सत्य को जाना नही, जीया जाता है । यहू तरव द्रष्टा तेश्वरो का शाश्वत प्रतिपादन है । वतमान का युग तकं का युग है, रत सत्य । यात्रा दुरुह होती जा रही है। यद्यपि महावीर के दर्शन मे “पण्णा समिक्खए प्म ” के द्वारा तर्क॑ की प्रतिष्ठा भो को गई है तथापि पूर्ण सत्य के दर्शन में तकका तत्थ न विज्जई, मद तत्थ न गाहिया” सूक्तो द्वारा तर्क॑ एव प्रज्ञा को [किचित्‌ कर घोषित कर दिया गया है । इसी तकंणातीत सत्य का साक्षारकार आ्राचायें देव की साधना का पुनीत पक्ष्य हैं । वे अपने इस लक्ष्य मे किस सीमा तक सफल हुए है, यह हमारे चिन्तन 'ग विषय सही है । किन्तु इतना में विश्वास के साथ कह सकता हु कि आचार्य पव भ्रपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण सजगता के साथ सर्मापित है तथा चरम केन्द्र 'वन्ढु तक पहुंचने के लिए अनवरत सावचेत एवं गतिशील हूँ । उनकी समत्व प्रज्ञा अपने अन्त शोध के पथ पर द्ुतगति से घावमान है । उनके चेतना के केन्द्र मे सत्य दर्शन अथवा समत्व दर्शन का व्यापक विस्फोट हुआ है इसीलिए उसमे स्वात्मलीनता के साथ समाज को कुछ दे देने की बेचैनी भी है । वे समाज मे चली भा रही रूद-धारणाओ एवं मिथ्या मान्यताओं पर श्रपने प्रवचनों के साल से करारा प्रहार करते हैं । इसी प्रकार निर्य्रत्थ भ्रमण सस्कृति के बिकास मे अपने प्रापकों समिधा के रूप में प्रस्तुत करते हैं । इसी आधार पर वे झ्रपने सघ के बहुमुखी विकास हेतु सतत प्रयत्नशील रहते है । साघना के क्षेत्र. मे वे अपने शिष्य-समुदाय के समक्ष नित नतन आयाम उद्घाटित करते हुए अपनी पुरातन मर्यादाओ के प्रति सतत जाति वा सफेत भी प्रस्तुत करते रहते हैं । ः शिक्षा के क्षेत्र से कुछ रूढिगत घारणाओओ घारणाओओ से ऊपर उठकर आचार्य शी बे यं परीक्षाप्रणाली का शुभारम्भ किया । फलस्वरूप एक क्रमवद्ध शिक्षा का प्र ही सघ के श्रमण-श्रमणियो में होता जा रहा हे । श्रपने शिप्य समुदाय नरन्तर तल-स्पर्शी अध्ययन हेतु प्रेरणा प्रदान करते रहते है । न । आचाय देव के व्यक्तित्व की महत्तम विशेषता यह हैं कि वे वन. कै




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