रोटी और बेटी | Roti Or Beti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अंक श्प्र
रविदास--तो फिर तू ही युना दे कोई और नुस्खा जिससे सिर
पे चढ़ा हुआ कजे उतर जाए जल्दी से ।
मस्तराम--तुम्हारा मतलव है कमाई का धन्घा, अभी लो ।
रविदास--लेकिन वेईमानी की वात न हो यह समझ ले ।
मस्तराम--विल्कुल नहीं, सीधा-सच्चा ठेकेदारी का काम है ।
यह रहा, सफा नम्बर एक सौ दस । आ हा हा, सेवा की
सेवा और मेवा की मेवा ।
रविदास--मगर यह ठेकेदारी काहे की है ।
मस्तराम--ठेके दार अन्तिम संस्कार ।
रविदास--अन्तिम संस्कार--मरने के वाद भला क्या काम हो
सकता है ?
मस्तराम--वही तो एक काम वाकी है जिसमें आज ठेकेदारों
की ज़रूरत है ।
रविदास--मैं तेरामतलव नठीं समझा ।
मस्तराम--मतलबव अभी समझाता हूँ (लैक्चर देते हुए) आज
का जमाना तरक्की का है । इन्सान के काम-काज बढ़ते
जा रहे हैं । आपस का प्यार घटता जा रहा है; सौ मोत
के वाद, लाश को ठिकाने लगाने के लिए अब आप लोगों
के पास वक्त नहीं रहा । सो अर्थी निकालने के लिए, फूल
चुनने के लिए, क्रियाकर्म करने के लिए आज ठेकेदारों की
ज़रूरत है । (लैक्चर देता हुआ वीच में एक बार भूल «जाता है
और कापी को उठाकर देख लेता है। )
रविदास--छिः छि: मौत के काम में दुकानदारी कितनी
बुरी वात है ।
६
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