रोटी और बेटी | Roti Or Beti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Roti Or Beti by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम अंक श्प्र रविदास--तो फिर तू ही युना दे कोई और नुस्खा जिससे सिर पे चढ़ा हुआ कजे उतर जाए जल्दी से । मस्तराम--तुम्हारा मतलव है कमाई का धन्घा, अभी लो । रविदास--लेकिन वेईमानी की वात न हो यह समझ ले । मस्तराम--विल्कुल नहीं, सीधा-सच्चा ठेकेदारी का काम है । यह रहा, सफा नम्बर एक सौ दस । आ हा हा, सेवा की सेवा और मेवा की मेवा । रविदास--मगर यह ठेकेदारी काहे की है । मस्तराम--ठेके दार अन्तिम संस्कार । रविदास--अन्तिम संस्कार--मरने के वाद भला क्या काम हो सकता है ? मस्तराम--वही तो एक काम वाकी है जिसमें आज ठेकेदारों की ज़रूरत है । रविदास--मैं तेरामतलव नठीं समझा । मस्तराम--मतलबव अभी समझाता हूँ (लैक्चर देते हुए) आज का जमाना तरक्की का है । इन्सान के काम-काज बढ़ते जा रहे हैं । आपस का प्यार घटता जा रहा है; सौ मोत के वाद, लाश को ठिकाने लगाने के लिए अब आप लोगों के पास वक्‍त नहीं रहा । सो अर्थी निकालने के लिए, फूल चुनने के लिए, क्रियाकर्म करने के लिए आज ठेकेदारों की ज़रूरत है । (लैक्चर देता हुआ वीच में एक बार भूल «जाता है और कापी को उठाकर देख लेता है। ) रविदास--छिः छि: मौत के काम में दुकानदारी कितनी बुरी वात है । ६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now