कामायनी - सौन्दर्य्य | Kamayani - Saundryya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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के धदने :रमणीयार्थप्रतिपा दिका दि: कला । वस्तुत: हसने “काम्य',
तथा वाक्य का' जो खूप,ऊपर ब्रिर्धारित किया दै, उसको ध्यत् में
रखने पर; उक्त दोनों पहिमापायों में विदा कोई _शाद्दिक देर फेर किये
ही 'रसात्मक' अथवा 'रमसीयार्थप्रतिपादक' चाक्य के 'श्न्तर्गत सभी
कलाशं को लिया जा सकता है ।'मेंरा श्रपना ्रनुमान तो यद दै कि
उक्त दोनों परिभाषायें सम्भवतः उस काल से चली शा रही थीं . लिस
समय “काम्य' , तथा वाक्य अपने सूल अर्थ में प्रयुक्त होते -थे;. श्रौरः
सादिस्यदर्पणकार तथा रख-गंगाधर ने केवल उनका पुनरुद्धार करके
कविता में लागू. किया । ज़ेसा इन ग्रन्थों में '*कदिता' के लिये किया
गया, बसा दी सम्भवतः अन्य कलाथ्यें के लिये . तत्तदूसम्बन्धी « प्रन्यों
में भी किया जाता होगा । इसका सब से अच्छा प्रमाण 'विध्णुधमोत्तिरम'
नामक अन्य है, जहाँ पक से झधिक कलाधों में, कविदा रे समान दी
'रसात्मकता', का उददेख किया गया दे; यहाँ पर विभिन्न कलाओओं से
सम्बन्ध रखने वाले '्ावश्यक उद्धरणों को 'विप्णुधर्मोत्तरद' में से
दिया जा रददा दे... ,- तो
(9) सात्य - सयकार-हारुप-करुख्ा-वीर रौद-भयासका: 1
वीभव्सादूभुत-शान्ताख्या नव नाव्य-रसा। स्मूता:
(रगान--नव रस । वचन हस्य-श्क्वारयोसध्यस-पर्चमी । वीररौदा:
दुभुवेषु पडजपंचमी । करुणे निपादसान्धारी । ' वीभस्स'
भयानकयोपिचतस शान्ते मध्यमसु । तथा लयाः । दास्य-
श्जारयोमंध्यमा । वफ्ेव्सभयानकयोर्विल स्वितस् । वीररौद्धा-
* * /. दूसुठेपुदुत ।
(३) दल-रसेन भावेन समन्वितं च तालजुर्ग काथ्यरसालु् व:
17 सीतासुगं नूत्त-मुशन्तिघन्य, सुखद धर्मबविवर्धमल््व ,
(४) चित्र--श्ज्ार-दास्प-करणा-दीर-रौंद-मयानकः
7 बीभासादूसुतशान्तारख्या नव चिंत्र उूसा स्टूढाः । ८
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